‘अल्लूरी सीताराम राजू’ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल एक भारतीय क्रांतिकारी “7 मई/बलिदान दिवस”


‘अल्लूरी सीताराम राजू’ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल एक भारतीय क्रांतिकारी “7 मई/बलिदान दिवस”

अल्लुरी सीताराम राजू का जन्म वर्तमान आंध्र प्रदेश में 4 जुलाई 1897 (कुछ स्रोतों में वर्ष 1898) में हुआ था।वह 18 वर्ष की आयु में एक संन्यासी बन गए और उन्होंने अपनी तपस्या, ज्योतिष तथा चिकित्सा के ज्ञान एवं जंगली जानवरों को वश में करने की अपनी क्षमता के कारण पहाड़ी व आदिवासी लोगों के बीच एक रहस्यमय आभा प्राप्त की।बहुत कम उम्र में राजू ने गंजम, विशाखापत्तनम और गोदावरी में पहाड़ी लोगों के असंतोष को अंग्रेज़ो के खिलाफ अत्यधिक प्रभावी गुरिल्ला प्रतिरोध में बदल दिया।

औपनिवेशिक शासन ने आदिवासियों की पारंपरिक पोडु (स्थानांतरित) खेती को खतरे में डाल दिया, क्योंकि सरकार ने वन भूमि को सुरक्षित करने की मांग की थी।वर्तमान आंध्र प्रदेश में जन्मे सीताराम राजू वर्ष 1882 के मद्रास वन अधिनियम के खिलाफ ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गए। इस अधिनियम ने आदिवासियों (आदिवासी समुदायों) के उनके वन आवासों में मुक्त आवाजाही तथा उनके पारंपरिक रूप पोडु (स्थानांतरित खेती झूम कृषि) को प्रतिबंधित कर दिया।

अंग्रेज़ो के प्रति बढ़ते असंतोष ने 1922 के रम्पा विद्रोह/मन्यम विद्रोह को जन्म दिया, जिसमें अल्लूरी सीताराम राजू ने एक नेतृत्वकर्त्ता के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई।रम्पा विद्रोह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के साथ हुआ। उन्होंने लोगों को खादी पहनने और शराब छोड़ने के लिये सहमत किया।लेकिन साथ ही उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारत केवल बल के प्रयोग से ही आज़ाद हो सकता है अहिंसा से नहीं।
स्थानीय ग्रामीणों द्वारा उनके वीरतापूर्ण कारनामों के लिये उन्हें “मन्यम वीरुडु” (जंगल का नायक) उपनाम दिया गया था।

7 मई 1924 में अल्लूरी सीताराम राजू को पुलिस हिरासत में ले लिया गया, एक पेड़ से बांँध कर सार्वजनिक रूप से गोली मार दी गई ।

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