कलाप्रेमी संगठक डा. शैलेन्द्रनाथ श्रीवास्तव “20 मार्च/जन्म-दिवस”
लोगों को जोड़ना एक कठिन काम है, उसमें भी कलाकारों को जोड़ना तो और भी कठिन है; क्योंकि हर कलाकार के अपने नखरे और वैचारिक पूर्वाग्रह होते हैं। कई बार तो वे एक साथ मंच पर बैठना भी पंसद नहीं करते। फिर भी ‘संस्कार भारती’ के अध्यक्ष के नाते विविध विधाओं के नये, पुराने और स्थापित कलाकारों को जोड़ने का काम डा. शैलेन्द्रनाथ श्रीवास्तव ने पूरी शक्ति से किया। उनकी मान्यता थी कि कला का कोई रूप अछूता न रहे तथा सबके बारे में प्रामाणिक पुस्तकें प्रकाशित हों।
शैलेन्द्र जी का जन्म 20 मार्च, 1936 को हुआ था। बचपन में ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आ गये थे। शिक्षा पूर्ण कर वे अध्यापक बने और क्रमशः पटना वि.वि. में आचार्य, हिन्दी विभागाध्यक्ष तथा फिर भागलपुर वि.वि. के कुलपति पद पर काम किया। अध्यापन के साथ उनकी वि.वि. में चलने वाली सामाजिक गतिविधियों में भी काफी रुचि रहती थी। इसलिए वे पटना वि.वि. शिक्षक संघ के भी अध्यक्ष रहे।
‘राष्ट्रीय सेवा योजना’ के अन्तर्गत वे स्वयं झाड़ू लेकर छात्रों के साथ सड़कों और नालियों की सफाई में जुट जाते थे। बिहार में प्रायः प्रतिवर्ष बाढ़ आती है। ऐसे में वे केवल भाषण ही नहीं देते थे, अपितु स्वयं सहायता सामग्री लेकर बाढ़ पीडि़त क्षेत्र में पहुँचकर ग्रामीणों की सेवा करते थे। 1974-75 में बिहार में हुए छात्र आन्दोलन में उन्होंने जयप्रकाश नारायण के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर संघर्ष किया। इस कारण आपातकाल में उन्हें जेल की यातनाएँ भी सहनी पड़ी। डा. शैलेन्द्र नाथ भाजपा के टिकट पर पटना शहर से एक बार विधायक तथा एक बार सांसद भी रहे।
अवकाश प्राप्ति के बाद उन्होंने अपना पूरा समय कलाकारों में राष्ट्रभाव जाग्रत करने वाली संस्था ‘संस्कार भारती’ को समर्पित कर दिया। उसके अध्यक्ष के नाते नौ साल तक उन्होंने देश के कोने-कोने में प्रवास किया। इस चक्कर में प्रायः वे अपने परिवार तक को उपेक्षित कर देते थे।
शैलेन्द्र जी को सभी भारतीय भाषाओं से प्रेम था; पर हिन्दी के प्रति मातृवत अनुराग होने के कारण वे उसे विश्व भाषा बनाना चाहते थे। उन्होंने कई ‘विश्व हिन्दी सम्मेलनों’ में भाग लिया। 1999 के लन्दन सम्मेलन में उन्हें शासन ने प्रतिनिधि नहीं बनाया, तो वे पत्नी सहित निजी खर्च पर वहाँ गये। हिन्दी दुनिया के अनेक देशों में बोली और समझी जाती है। अतः भाजपा शासन में उन्होंने विदेश मन्त्री यशवन्त सिन्हा को 10 जनवरी को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ मनाने का सुझाव दिया, चूँकि 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में पहला ‘विश्व हिन्दी सम्मेलन’ हुआ था। उनका यह सुझाव मान लिया गया।
हिन्दी भाषा एवं समस्त भारतीय कलाओं के प्रति उनके समर्पण को देखकर शासन ने उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया। भाजपा के शासनकाल में कई बार उन्हें राज्यपाल बनाने की चर्चा हुई; पर वे एक मौन साधक की तरह संस्कार भारती के काम में ही लगे रहे।
उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं, जिनमें लोकनायक जयप्रकाश की जीवनी, लिफाफा देखकर (ललित निबन्ध), शिक्षा के नाम पर, कला संस्कृति और हम (निबन्ध संग्रह), बहुत दिनों के बाद (मुक्तक संग्रह), शब्द पके मन आँच पर, कलम उगलती आग (कविता संग्रह) प्रमुख हैं।
डा. शैलेन्द्रनाथ श्रीवास्तव ‘चरैवेति-चरैवेति’ के जीवन्त प्रतीक थे। 2006 ई. संस्कार भारती का ‘रजत जयन्ती वर्ष’ था। इस वर्ष में संगठनात्मक विस्तार के लिए उन्होंने व्यापक प्रवास का कार्यक्रम बनाया था; पर उसे पूरा करने से पहले ही 12 फरवरी, 2006 को वे अनन्त के प्रवास पर चले गये।
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