श्रुतम्

विकसित भारत 2047 की संकल्पना-6

विकसित भारत 2047 की संकल्पना-6

भारत-2047 को अपना लक्ष्य तय करते हुए वैश्विक परिप्रेक्ष्य के साथ-साथ मानव जाति का भी चिंतन करना होगा और फिर केवल मानव जाति का ही नहीं, बल्कि समग्र जीव जंतुओं, प्रकृति का भी ध्यान रखना होगा। तभी हिंदुत्व या भारत एक समग्र व सार्वभौमिक राष्ट्र के रूप में भविष्य की अपनी सफल व प्रेरक यात्रा कर पाएगा। क्योंकि हम अपने अतिरिक्त शेष देशों, मनुष्यों, जीव-जंतुओं, प्रकृति, यहां तक कि समग्र सृष्टि की भी चिंता और चिंतन करते आए हैं। यह हमारा नैसर्गिक स्वभाव है।
हमारे यहां पर दैनिक प्रार्थना में समग्र के कल्याण के भाव से कहा गया है:-

ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षंशान्तिः, पृथ्वीशान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्मशान्तिः, सर्वं शान्तिः, शान्तिरेवशान्तिः, सामाशान्तिरेधि।।
शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।

हिंदी भावार्थः शान्तिः कीजिये प्रभु! त्रिभुवन में, जल में, थल में और गगन में, अन्तरिक्ष में, अग्नि पवन में, औषधियों, वनस्पतियों, वन और उपवन में, सकल विश्व में, अवचेतन में शान्ति, राष्ट्र निर्माण और सृजन में, नगर, ग्राम और भवन में, प्रत्येक जीव के तन, मन और जगत के कण-कण में, शान्ति कीजिए ! शान्ति कीजिए ! शान्ति कीजिए

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