श्रुतम्

भारत को रक्तरंजित करने का षड्यंत्र-3

देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त के दौर में भारत के राजनीतिक विमर्श को ‘पक्षपाती धर्मनिरपेक्षता और तुष्टिकरण’ के कलंकित सिद्धातों ने जकड़ लिया।इसके परिणामस्वरूप एक नए प्रकार से धमकाने का दौर शुरू हुआ; जिसके सामने विभाजन के बाद के भारतीय नेताओं ने घुटने टेक हथियार डाल दिए। इसके साथ ही तथाकथित अल्पसंख्यकों- जो कि सही मायनों में बहुसंख्य अल्पसंख्यक हैं के संस्थानों से ‘धर्मनिरपेक्षता का प्रमाणपत्र प्राप्त करने की अंधी दौड़’ आरम्भ हो गई।

स्वतंत्रता के पश्चात एक ओर जहाँ भारत ने जानबूझ कर स्वाभाविक पसंद के रूप में पंथनिरपेक्ष बहुलतावादी समाज का मार्ग अपनाया, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान में एकेश्वरवाद के आधार पर इस्लामिक देश की स्थापना की गई। पाकिस्तान में जहाँ हिंदू जनसँख्या 15 प्रतिशत से गिर कर 1.6 प्रतिशत रह गई है; वहीं भारत में मुस्लिम जनसँख्या फली फूली और कई गुना बढ़ गई है।

पाकिस्तान का इस्लामिक संविधान लगातार गैर-मुस्लिम विरोधी होता गया। वहाँ के नीति-निर्माता अल्पसंख्यकों के अधिकारों के सबसे बड़े लुटेरे बन बैठे। परन्तु, दूसरी तरफ भारत की जन नीतियाँ और नेता घुटने टेक कर अल्पसंख्यकवादी व क्षमाप्रार्थी सरीखे बन गए। यह वोटों के लिये ‘इस हाथ दे, उस हाथ ले’ जैसा सौदा था।
इस अंधी दौड़ ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के मनोबल को बहुत नुकसान पहुँचाया। इसका परिणाम यह हुआ कि देश में कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन पैर पसारते गए। आतंकवाद, हिंदुओं के नरसंहार के साथ-साथ देश की पूर्वी सीमाओं से सुनियोजित तरीके से निश्चित उद्देश्य के लिए अवैध घुसपैठ कराई गई।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video