डॉ हेडगेवार, संघ और स्वतंत्रता संग्राम”१०-विश्वास, साहस और सूझबूझ”
ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रति डॉ. हेडगेवार का दृष्टिकोण तथा अंग्रेज शासकों को किसी भी ढंग से घुटने टेकने पर मजबूर कर देने की उनकी गहरी सोच का आभास हो जाता है। डॉ. हेडगेवार जीवनभर अंग्रेजों की वफादारी करने वाले नेताओं की समझौतावादी नीतियों को अस्वीकार करते रहे।
डॉ. हेडगेवार का यह प्रयास अंग्रेजी शासन के विरुद्ध लड़ा जाने वाला दूसरा स्वतंत्रता संग्राम था। 1857 का स्वतंत्रता संग्राम बहादुरशाह जफर जैसे कमजोर नेतृत्व तथा अंग्रेजों की दमनकारी व विभेदकारी रणनीति के कारण राजनीतैक दृष्टि से विफल हो गया था।
परन्तु 1917-18 का यह स्वतंत्रता आंदोलन कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं द्वारा विश्वयुद्ध में फंसे अंग्रेजों का साथ देने से बिना लड़े ही विफल हो गया। कांग्रेस के इस व्यवहार से भारत में अंग्रेजों के उखड़ते साम्राज्य के पांव पुन: जम गए, जिन्हें हिलाने के लिए 30 वर्ष और लग गए।
शसस्त्र क्रांति के द्वारा विदेशी सत्ता के विरूद्ध 1857 जैसे महाविप्लव का विचार और पूरी तैयारी जब अपने निर्धारित लक्ष्य को भेद नहीं सकी, तो भी डॉ. हेडगेवार के जीवन लक्ष्य में कोई कमी नहीं आई।
जिस विश्वास व सूझबूझ के साथ उन्होंने शस्त्रों और युवकों को एकत्रित करके अंग्रेजों के विरूद्ध युद्ध की तैयारी की थी, उसी सूझबूझ के साथ डॉ. हेडगेवार ने सब कुछ शीघ्रता से समेटकर अपने साथ जुड़े देशभक्त क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के कोपभाजन से बचा लिया।
सारे महाविप्लव की तैयारी को गुप्त रखने का लाभ तो हुआ परन्तु एक हानि यह भी हुई जिसका आज अनुभव किया जा रहा है। कि बहुत गहरी और गुप्त ब्रिटिश विरोधी लड़ाई की तैयारी इतिहास के पन्नों से भी नदारद हो गई।
क्रमशः
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