डॉ हेडगेवार, संघ और स्वतंत्रता संग्राम
२.सीताबर्डी का किला
1909 में इंग्लैंड के सम्राट एडवर्ड सप्तम का राज्यारोहण उत्सव था। अंग्रेज और उनके भक्त लोग इस दिन अपने घरों, दुकानों तथा उद्योग भवनों पर रोशनी करके आतिशंबाजी करते थे।
नागपुर की एक प्रसिद्ध ऐम्पस मिल के मालिकों ने भी अपने उद्योग भवन के चारों ओर रंगबिरंगी रोशनियां की। नगर के अधिकांश लोग अपने बच्चों के साथ इस दृश्य को देखने के लिए गए।
बाल केशव ने अपने मित्रों से कहा “विदेशी राजा के राज्यारोहण का उत्सव मनाना हमारे लिए शर्म की बात है। जिस विदेश राज्य को उखाड़ फेंकना चाहिए। उसका उत्सव मनाने वालों पर धिक्कार है। मैं नहीं जाऊंगा और न ही आपको वहां जाने दूंगा।”
केशव को हृदय से स्नेह करने वाले सभी मित्रों ने उसकी मानसिक पीड़ा और मन में हिलोरें ले रही देशभक्ति को समझ लिया। सभी ने यह स्वीकार कर लिया कि विदेशी राजा के राज्यारोहण की खुशियाँ मनाने की अपेक्षा हमें विदेशी राज्य को ही समाप्त की योजना तैयार करनी चाहिए।
जैसे-जैसे समय बीतता गया बाल केशव के मन में जागृत हो रही स्वाधीनता की उत्कृष्ट भावनाएं भी प्रचंड गति पकड़ने लगीं। नागपुर से थोड़ी दूर सीताबर्डी नामक किला है। बाल केशव ने अपनी माता से सुना था कि यह किसा कभी हिन्दू राजाओं के अधिकार में था। पर केशव सोचता था इस किले पर अंग्रेजों का झंडा यूनियन जैक क्यों है ?
वहां तो हमारा भगवाध्वज ही होना चाहिए। बाल सखाओं की मंडली ने किले को जीत करके यूनियन जैक को हटाने की योजना बना डाली। किले तक सुरंग खोदकर वहां पहुँचना और किले के पहरेदारों के साथ युद्ध करके भगवा ध्वज फहराना।
केशव और उसके साथी अपने गरुजी के घर में रहकर अध्ययन करते थे, 7-8 बालकों के नेता केशव ने वजेह गुरुजी के घर के एक कमरे से सुरंग खोदना शुरु कर दिया। एक रात फावडे, कुदाली, बेलचा इत्यादि से खुदाई करने की आवाज गुरुजी ने सुन ली। दरवाजे को धक्का देकर गुरुजी अंदर आए तो आश्चर्यचकित हो गए।
बाल सेना किले पर चढ़ाई करने की तैयारी कर रही थी। गुरुजी ने समझाकर सबको शांत कर दिया। उपर्युक्त घटना के बाल केशव के मन में स्वतंत्रता की ललक उसके लिए संघर्ष, संगठन कौशल, टोली तैयार करने की क्षमता, गोपनीयता के साथ से कार्य करने का तरीका और ध्येय के लिए कुछ कर गुजरने की निष्ठा का परिचय मिलता है।
बाद में वजेह गुरुजी ने अपने एक साथी से कहा था ”यह बालक बड़ा होकर किसी शक्तिशाली हिन्दू संगठन को जन्म देगा और ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध जल रही स्वाधीनता की मशाल को शतगुणित कर देगा।”
बाल केशव ने अपने मित्रों के साथ निकटवर्ती जंगल में जाकर “किला विजय करो” और ‘ध्वज जीतकर लाओ’ जैसे वीरोचित खेल खेलने प्रारम्भ कर दिए। ऐसे ही युद्धों के खेल छत्रपति शिवाजी अपने बाल सखाओं के साथ खेला करते थे।
इसी समय केशव के नेतृत्व में विद्यार्थियों के एक चर्चा-मंडल का गठन हुआ। इस मंडल में किन्दू महापुरुषों, योद्धाओं और देशभक्त क्रांतिकारी नेताओं के जीवन प्रसंगों पर चर्चा होती थी।
इसी समय जब मध्यप्रदेश के एक संगठन स्वदेश-बांधव की ओर से स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार की गतिविधियां प्रारम्भ हुई तो केशव की मित्र मंडली ने भी जमकर भाग लिया।
1905-06 के आसपास लोकमान्य तिलक की योजनानुसार ‘गुप्त बैठकों’ की शुरुआत हुई जिनमें क्रांतिकारियों को तैयार किया जाता था। बाल केशव ने भी इन गतिविधियों में अपना सक्रिय सहयोग दिया।
क्रमशः
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