पुण्यतिथि हर दिन पावन

गतिशील व्यक्तित्व केशवराव देशमुख “2 मार्च/पुण्य-तिथि”


गतिशील व्यक्तित्व केशवराव देशमुख “2 मार्च/पुण्य-तिथि”

संघ के कार्य में डा. हेडगेवार एवं श्री गुरुजी की विशेष भूमिका है। गुजरात प्रांत प्रचारक श्री केशवराव देशमुख के जीवन में इन दोनों विभूतियों का एक अद्भुत प्रकार से साक्षात्कार हुआ। उनका जन्म 1921 ई0 में डा. हेडगेवार के जन्म दिवस (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) पर काशी में हुआ और जब उनका देहांत हुआ, उस दिन श्री गुरुजी का जन्म दिवस (विजया एकादशी) थी।

केशवराव का परिवार संघमय होने से वे बालपन में ही स्वयंसेवक बन गये। कुछ समय नौकरी के बाद 1945 में उन्होंने प्रचारक बनने का निर्णय लिया और उन्हें गुजरात के प्रसिद्ध नगर सूरत में भेजा गया। केशवराव शीघ्र ही वहां की भाषा, भूषा, भोजन और परम्पराओं से एकरूप हो गये। कुछ वर्षों में सूरत और उसके आसपास कई शाखाएं प्रारम्भ हो गयीं। दक्षिण गुजरात का काम मिलने पर उन्होंने बड़ोदरा को केन्द्र बनाया। रेल और बस द्वारा सघन प्रवास कर उन्होंने वहां भी संघ को सबल आधार दिया।

वे प्रवास में एक-दो कार्यकर्ताओं को साथ रखते थे। रास्ते भर वार्ता और फिर जहां रुकते, वहां शाखा, बैठक आदि के माध्यम से उसका प्रशिक्षण चलता रहता। इस प्रकार उनकी चलती-फिरती पाठशाला में अनेक कार्यकर्ता निर्मित हुए।

1970-71 में वे गुजरात के प्रांत प्रचारक बने। योजनाबद्ध कार्य करना केशवराव की विशेषता थी। उन्होंने संघ तथा संघ विचार पर आधारित विविध कार्यों के संचालन की दूरगामी योजना बनाकर उनके लिए कार्यकर्ता उपलब्ध कराये। वनवासी कल्याण आश्रम, राजनीतिक क्षेत्र, साधना पत्रिका, सहकार आदि कई क्षेत्रों में उनके लगाये कार्यकर्ता आज भी सतत सक्रिय हैं।

1973-74 में गुजरात के भ्रष्ट शासन के विरुद्ध हुआ ‘नवनिर्माण आंदोलन’ कुछ ही समय में देशव्यापी हो गया, जिसकी परिणति 1975 में आपातकाल के रूप में हुई। गुजरात में भी अनेक कार्यकर्ता जेल गये। केशवराव ने उनके परिवारों की भरपूर चिन्ता की, जिससे जेल में बंद कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा बना रहा।

11 अगस्त, 1979 को मोरवी नगर के पास मच्छू बांध टूटने से उस क्षेत्र में भारी विनाश हुआ। केशवराव के निर्देश में स्वयंसेवकों ने जो राहत के कार्य किये, उनके कारण संघ की पूरे विश्व में प्रशंसा हुई। भयानक दुर्गंध के बीच मानव और पशुओं के शव उठाने वाले स्वयंसेवक दल को लोगों ने ‘शव सेना’ कहा। इसके बाद तीन साल तक वहां पुनर्निमाण का काम भी चला। पूरे देश के स्वयंसेवकों तथा संघप्रेमियों ने इसके लिए आर्थिक सहयोग दिया।

दो मार्च, 1981 को श्री गुरुजी के जन्मदिवस पर बड़ोदरा के कलाकार स्वयंसेवकों ने ‘स्वरांजलि’ नामक गीत-संगीतमय कार्यक्रम प्रस्तुत किया। केशवराव उसमें उपस्थित थे। बड़ोदरा लम्बे समय तक उनका केन्द्र रहा था। अतः घर-घर में उनका अच्छा परिचय था। सैकड़ों स्वयंसेवक परिवार सहित वहां आये थे। सबसे मिलकर केशवराव बहुत प्रसन्न थे। कार्यक्रम के बाद एक कार्यकर्ता के घर भोजन करने जाते समय मार्ग में जब जीप ने एक तीव्र मोड़ लिया, तो केशवराव की निश्चल देह चालक की गोद में लुढ़क गयी।

कार्यकर्ता के घर पहुंचकर चिकित्सक को बुलाया गया, तो उसने उन्हें मृत घोषित कर दिया। सैकड़ों कार्यकर्ताओं को गतिशील करने वाले केशवराव का यों अचानक प्र्र्रस्थान आज भी गुजरात के कार्यकर्ताओं के मन में एक टीस पैदा कर देता है।

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