विवेकानंद शिला स्मारक के शिल्पी एकनाथ रानडे “22 अगस्त/पुण्यतिथि”


विवेकानंद शिला स्मारक के शिल्पी एकनाथ रानडे” “22 अगस्त/पुण्यतिथि””

एकनाथ रानडे का जन्म 19 नवम्बर, 1914 को ग्राम टिलटिला (जिला अमरावती, महाराष्ट्र) में हुआ था। पढ़ने के लिए वे अपने बड़े भाई के पास नागपुर आ गये। वहीं उनका सम्पर्क डा. हेडगेवार से हुआ। वे बचपन से ही बहुत प्रतिभावान एवं शरारती थे। कई बार शरारतों के कारण उन्हें शाखा से निकाला गया; पर वे फिर जिदपूर्वक शाखा में शामिल हो जाते थे। इस स्वभाव के कारण वे जिस काम में हाथ डालते, उसे पूरा करके ही दम लेते थे।

मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर उन्होंने संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार के पास जाकर प्रचारक बनने की इच्छा व्यक्त की; पर डा. जी ने उन्हें और पढ़ने को कहा। अतः 1936 में स्नातक बनकर वे प्रचारक बने। प्रारम्भ में उन्हें नागपुर के आसपास का और 1938 में महाकौशल का कार्य सौंपा गया। 1945 में वे पूरे मध्य प्रदेश के प्रान्त प्रचारक बने।

1948 में गान्धी हत्या का झूठा आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। संघ के सभी प्रमुख अधिकारी पकड़े गये। ऐसे में देशव्यापी सत्याग्रह की जिम्मेदारी एकनाथ जी को दी गयी। उन्होंने भूमिगत रहकर पूरे देश में प्रवास किया, जिससे 80,000 स्वयंसेवकों ने उस दौरान सत्याग्रह किया। एकनाथ जी ने संघ और शासन के बीच वार्ता के लिए मौलिचन्द्र शर्मा तथा द्वारका प्रसाद मिश्र जैसे प्रभावशाली लोगों को तैयार किया। इससे सरकार को सच्चाई समझ में आयी और प्रतिबन्ध हटा लिया गया।

इसके बाद वे एक साल दिल्ली रहे। 1950 में उन्हें पूर्वोत्तर भारत का काम दिया गया। 1953 से 56 तक वे संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख और 1956 से 62 तक सरकार्यवाह रहे। इस काल में उन्होंने संघ कार्य तथा स्वयंसेवकों द्वारा स॰चालित विविध संगठनों को सुव्यवस्था प्रदान की। प्रतिबन्ध काल में संघ पर बहुत कर्ज चढ़ गया था। एकनाथ जी ने श्री गुरुजी की 51वीं वर्षगाँठ पर श्रद्धानिधि संकलन कर उस संकट से संघ को उबारा।

1962 में वे अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख बने। 1963 में स्वामी विवेकानन्द की जन्म शताब्दी मनायी गयी। इसी समय कन्याकुमारी में जिस शिला पर बैठकर स्वामी जी ने ध्यान किया था, वहाँ स्मारक बनाने का निर्णय कर श्री एकनाथ जी को यह कार्य सौंपा गया। दक्षिण में ईसाइयों का काम बहुत बढ़ रहा था। उन्होंने तथा राज्य और केन्द्र सरकार ने इस कार्य में बहुत रोड़े अटकाये; पर एकनाथ जी ने हर समस्या का धैर्यपूर्वक समाधान निकाला।

इसके स्मारक के लिए बहुत धन चाहिए था। विवेकानन्द युवाओं के आदर्श हैं, इस आधार पर एकनाथ जी ने जो योजना बनायी, उससे देश भर के विद्यालयों, छात्रों, राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों और धनपतियों ने इसके लिए पैसा दिया। इस प्रकार सबके सहयोग से बने स्मारक का उद्घाटन 1970 में उन्होंने राष्ट्रपति श्री वराहगिरि वेंकटगिरि से कराया।

1972 में उन्होंने विवेकानन्द केन्द्र की गतिविधियों को सेवा की ओर मोड़ा। युवक एवं युवतियों को प्रशिक्षण देकर देश के वनवासी अ॰चलों में भेजा गया। यह कार्य आज भी जारी है। केन्द्र से अनेक पुस्तकों तथा पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन भी हुआ।

इस सारी दौड़धूप से उनका शरीर जर्जर हो गया। 22 अगस्त 1982 को मद्रास में भारी हृदयाघात से उनका देहान्त हो गया। कन्याकुमारी में बना स्मारक स्वामी विवेकानन्द के साथ श्री एकनाथ रानडे की कीर्त्ति का भी सदा गान करता रहेगा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *