सबके राम-21 “रामतत्त्व के शक्ति पुंज”
मानस की शुरुआत में पार्वती भगवान् शंकर से डरते-डरते कुछ प्रश्न पूछती हैं, पर अधिकार से नहीं। पार्वती के प्रश्नों से शिव प्रसन्न होते हैं। भक्ति मार्ग में प्रथम बार नारी को अधिकार मिला था। “उमा प्रस्न तब सहज सुहाई।” इसके बाद शिव पार्वती को आदर के साथ रामकथा सुनाते हैं। पार्वती ने पूछा न होता तो रामकथा शिव के मानस में ही रह जाती।
सीता और पार्वती का कार्यक्षेत्र घर की चारदीवारी के बाहर है। सीता, राम से महत्त्वपूर्ण है। पहले सीता, फिर राम। पहले भवानी, फिर शंकर। यहाँ भी तुलसी की उदार और अनोखी नारी-दृष्टि है। वह मंदोदरी और बाली की पत्नी तारा को सम्राज्ञी बनाते हैं।
रामकथा में नारी का दूसरा पहलू ‘माता’ का है। माँ महान् है। मातृ सेवा, सृजन और सहनशीलता का सर्वोत्तम उदाहरण है। रामजन्म में भी कौशल्या की वंदना है, दशरथ की नहीं।
“भये प्रकट कृपाला दीन दयाला, कौशल्या हितकारी। बंदउं कौसल्या दिसि प्राची। कीरति जासु सकल जग माची॥”
मातृ वंदना तुलसी को प्रिय है। पूरी रामकथा में सुमित्रा की क्या भूमिका है ? एक-दो बार उनका बेजोड़ प्रसंग आता है। राम को वनवास की आज्ञा है। लक्ष्मण सुमित्रा के पास खड़े हैं। उनका चित्त स्थिर नहीं है। माता कारण पूछती हैं। वे बताते हैं कि वे राम के साथ वन जाना चाहते हैं। लक्ष्मण को लगता है, माता इसकी अनुमति नहीं देगी। सुमित्रा झट समझ गईं। कहा, जाओ ! समूचे जीवन की यही तो शिक्षा है- रामभक्ति की शिक्षा। जाओ, राम-सीता को ही माता-पिता मानो। राम अवध के पर्याय हैं। अवध वहीं है, जहाँ राम। तुम्हारा जन्म तो सीता-राम की सेवा के लिए ही हुआ है।
“तात तुम्हारि मातु बैदेही। पिता रामु सब भाँति सनेही ॥”