Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog श्रुतम् सबके राम-6 “इहलोक के राम”
श्रुतम्

सबके राम-6 “इहलोक के राम”

सबके राम-6 “इहलोक के राम:”

राम साध्य हैं, साधन नहीं। वह महज दशरथ का पुत्र और अयोध्या का राजा नहीं है। वह आत्मशक्ति का उपासक और प्रबल संकल्प का प्रतीक है। वह निर्बल का एकमात्र सहारा है। उसकी कसौटी प्रजा का सुख है। वह सबको आगे बढ़ने की प्रेरणा और शक्ति देता है।

हनुमान, सुग्रीव, जाम्बवंत, नल, नील, सभी को समय-समय पर नेतृत्व का अधिकार उन्होंने दिया। उनका जीवन बिना कुछ हड़पे हुए सबको सबका हक देने की मिसाल है। वह देश में शक्ति का केवल एक केंद्र बनाना चाहते हैं।

रामायण काल में देश में शक्ति और प्रभुत्व के दो प्रतिस्पर्धी केंद्र थे। अयोध्या और लंका। अयोध्या सात्त्विक भक्ति की प्रतीक थी और लंका आसुरी शक्तियों का गढ़। “राम पाप के विरुद्ध सत्य की शक्ति की स्थापना करना चाहते थे, इसलिए राम अयोध्या से लंका गए।” रास्ते में उन्होंने अनेक राज्य जीते। पर राम ने जीते हुए राज्य हड़पे नहीं। उनकी जीत शालीन थी। जीते राज्यों को वहाँ के योग्य उत्तराधिकारियों को सौंपा। सुग्रीव और विभीषण को जीता हुआ राज्य सौंपकर आगे बढ़ गए।

इसीलिए अल्लामा इकबाल कहते हैं-
‘है राम के वजूद पे हिंदोस्तां को नाज, अहले नजर समझते हैं, उसको इमाम-ए-हिंद।’
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