सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 15
स्वतंत्रता सेनानी जो मात्र 17 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय ध्वज के लिए बलिदान हुई…
“अंग्रेजों! तुम हमारे इन शरीरों को मार सकते हो, पर हमारी आत्मा को छू भी नहीं सकते। तुम हमें रोकने की कितनी भी चेष्टा करोगे, व्यर्थ सिद्ध होंगी। हम आगे बढ़ते रहेंगे..। कोई भी ताकत हमें राष्ट्रीय ध्वज फहराने से नहीं रोक सकती, और एक दिन ये सारे देश में फहरायेगा…।”
उस युवती की ऐसी कड़कती और ओजस्वी वाणी सुनकर उसके साथी समूह ‘मृत्यु वाहिनी’ में नई ऊर्जा आ गई और वे फिर आगे बढ़ चले। ये कड़क आवाज कनक लता बरूआ की थी, जो तत्समय मात्र 17 वर्ष की थीं।
ये सब लोग ‘मृत्यु वाहिनी’ के सदस्य थे, और इन सबका सपना भारत माँ को अंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्र कराने का था। सामने अंग्रेज बंदूक ताने खड़े थे, और मृत्यु वाहिनी के लोग झंडा लिए आगे बढ़ रहे थे। इन सब का लक्ष्य था गोहपुर पुलिस थाने पर झंडा फहराना…।
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