श्रुतम्

करतार सिंह सराभा-5

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 17

मात्र 19 वर्ष की आयु में शहीद हो गए थे, जिन्हें सरदार भगत सिंह अपना गुरु मानते थे…।

गदर पार्टी में केवल सिक्ख या पंजाबी ही नहीं थे, बल्कि पूरे देश के स्वतंत्रता सेनानी इसमें शामिल थे। कालांतर में सोहन सिंह भाकना ने कहा कि ‘हम सिख या पंजाबी नहीं थे, हमारा एकमात्र धर्म भारत को आजाद कराना और जाति देशभक्ति था…।’
गदर पार्टी के अन्य प्रमुख सदस्यों में रासबिहारी बोस, हरदयाल, गुलाब कौर और भाई परमानंद आदि थे।

करतार सिंह सराभा और गदर पार्टी के अन्य नेताओं ने भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध खुला संघर्ष आरम्भ करने का निश्चय किया। द गदर के 5 अगस्त, 1914 के संस्करण में “Decision of Declaration of War Against British Government ( ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का फैसला)” प्रकाशित किया गया।

इसके पश्चात् सन् 1914 में करतार सिंह भारत वापस आ गए। इस घोषणा की हजारों प्रतियाँ भारत के करतार सिंह और सैकड़ों अन्य गदर पार्टी के सदस्य जो विदेश में रह रहे थे- शहरों, गाँवों और ब्रिटिश सेना में कार्य कर रहे भारतीय सिपाहियों के बीच वितरित की गई।

करतार सिंह सराभा रासबिहारी बोस से बनारस में मिले और उन्हें बताया कि विदेश से 20 हज़ार और भारतीय इस गदर में शामिल होने तथा अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने के लिए भारत आ रहे हैं।

इसी दौरान करतार सिंह और गदर पार्टी के अन्य सदस्यों ने पंजाब में जगह-जगह अंग्रेजों के विरुद्ध छोटे-छोटे विद्रोह करने आरम्भ कर दिए। ये लोग गाँव-गाँव घूमते थे और लोगों को अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने और भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देते थे।
25 जनवरी, 1915 को गदर पार्टी के सदस्यों की एक बैठक में 21 फरवरी को अमृतसर से विद्रोह के आरम्भ का निर्णय किया गया। इस बैठक में करतार सिंह सराभा और रासबिहारी बोस दोनों मौजूद थे।

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