मा. रंगा हरी जी नहीं रहे
29 अक्टूबर, रविवार सुबह दुखद निधन ।
कोच्चि: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ज्येष्ठ विचारक तथा कर्म योगी माननीय रंगा हरी जी का रविवार 29 अक्तूबर 2023 सुबह लगभग 7 बजे कोच्चि के अमृता अस्पताल में दुखद निधन हो गया। वे 93 वर्ष के थे। आयु के तेरहवें वर्ष में वे संघ से जुड़े तथा जीवन के अंत तक स्वयंसेवक के रूप में सक्रिय रहे।
सनातन राष्ट्रियत्व के पुरोधा रहे रंगा हरी जी ने संघ कार्य हेतु पांच महाद्वीपोंका प्रवास किया। उन्होंने पांच सरसंघचालक सर्वश्री गुरुजी गोलवलकर, मधुकर दत्तात्रय उपाख्य बालासाहेब देवरस, प्रो. राजेंद्रसिंह जी उपाख्य रज्जुभैय्या, के. एस. सुदर्शन तथा डॉ. मोहन भागवत के साथ कार्य किया।
5 दिसंबर 1930 में जन्मे हरीजी पिता टी. जे. शेनॉय तथा माता
पद्मावती की आठ संतानोंमें दूसरे क्रमांक की संतान थे। उनका ग्राम त्रिपुनिथरा था।सेंट अल्बर्ट हाई स्कूल में शिक्षा ग्रहण की तथा कोच्चि के महाराजा कॉलेज से पदवी प्राप्त की
शिक्षा के दौरान राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रहने की वजह से उन्हें कारावास हुआ अतः रिहा होने के उपरांत वे रसायनशास्त्र में आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। उन्होंने फिर अर्थशास्त्र में पदवी प्राप्त की तथा संस्कृत में भी अध्ययन किया।
महात्मा गांधी की हत्या के उपरांत वर्ष 1948 से एप्रिल 1949 तक संघ पर पाबंदी लगाई गई थी।तब हरीजी का समय एक सत्याग्रही के रूप में कन्नूर जेल में व्यतीत हुआ।पदवी प्राप्त करने के उपरांत वे पूर्णकालीन संघ प्रचारक बने तथा कोच्चि के निकट उत्तर परावुर में संघ कार्य आरंभ किया।
आपातकाल के दौरान उन्होंने छद्म वेश में गुप्त रुपसे कार्य जारी रखा। वर्ष 1983 से 1993 के दौरान उन्होंने केरल प्रान्त प्रचारक, अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख (1990) तथा अखिल भारतीय बौध्दिक प्रमुख (1991-95) आदी दायित्वोंका निर्वहन किया। वर्ष 1994 से 2005 तक वे हिन्दू स्वयंसेवक संघ के एशिया एवम् ऑस्ट्रेलिया में में सम्पर्क कार्यकर्ता भी रहे।
वर्ष 2005 से 2006 तक वे अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य भी रहे।उन्होंने संस्कृत, कोंकणी, मलयालम, हिंदी, मराठी, तमिल तथा हिंदी आदी विभिन्न भाषाओं में पचास ग्रंथों की रचना की
गुजराती, बंगला तथा असमिया आदि भाषाओं मे उन्हे संभाषण प्रभुता प्राप्त थी। उन्होंने श्री गुरुजी के समग्र कृतियों का संग्रह तथा संपादन किया जी समग्र गुरुजी के बारह खंडों में प्रकाशित हुए।
हाल ही में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी के हाथों प्रकाशित पृथ्वी सूक्त: एन ओड टू मदर अर्थ उनकी अंतिम पुस्तक रही।
ॐ शांति
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