Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog आध्यात्म “महाराजा अग्रसेन जयंती”
आध्यात्म जन्म दिवस हर दिन पावन

“महाराजा अग्रसेन जयंती”

“महाराजा अग्रसेन जयंती”

महाराजा अग्रसेन एक पौराणिक कर्मयोगी लोकनायक, समाजवाद के प्रणेता, युग पुरुष, तपस्वी, राम राज्य के समर्थक एवं महादानी थे।

इनका जन्म द्वापर युग के अंत व कलयुग के प्रारंभ में हुआ था। वें भगवान श्री कृष्ण के समकालीन थे। महाराजा अग्रसेन का जन्म अश्विन शुक्ल प्रतिपदा हुआ, जिसे अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिवस को अग्रसेन महाराज जयंती के रूप में मनाया जाता हैं।

उनका घराना सूर्यवंशी क्षत्रिय उनके पिता महाराजा श्री वल्लभसेन जी एवम माता महारानी श्रीमती भगवती देवी जी थी ।

समयानुसार युवावस्था में उन्हें राजा नागराज की कन्या राजकुमारी माधवी के स्वयंवर में शामिल होने का न्योता मिला। उस स्वयंवर में दूर-दूर से अनेक राजा और राजकुमार आए थे। यहां तक कि देवताओं के राजा इंद्र भी राजकुमारी के सौंदर्य के वशीभूत हो वहां पधारे थे। स्वयंवर में राजकुमारी माधवी ने राजकुमार अग्रसेन के गले में जयमाला डाल दी। यह दो अलग-अलग संप्रदायों, जातियों और संस्कृतियों का मेल था। जहां अग्रसेन सूर्यवंशी थे, वहीं माधवी नागवंश की कन्या थीं।

कुछ समय बाद महाराज अग्रसेन ने अपने प्रजा-जनों की खुशहाली के लिए काशी नगरी जा शिवजी की घोर तपस्या की, जिससे भगवान शिव ने प्रसन्न हो उन्हें माँ लक्ष्मी की तपस्या करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने परोपकार हेतु की गई तपस्या से खुश हो उन्हें दर्शन दिए और कहा कि अपना एक नया राज्य बनाएं और क्षात्र धर्म का पालन करते हुवे अपने राज्य तथा प्रजा का पालन – पोषंण व रक्षा करें ! उनका राज्य हमेशा धन-धान्य से परिपूर्ण रहेगा|

महाराज अग्रसेन ने १०८ वर्षों तक राज किया। उन्होंने जिन जीवन मूल्यों को ग्रहण किया उनमें परंपरा एवं प्रयोग का संतुलित सामंजस्य दिखाई देता है। उन्होंने एक ओर हिन्दू धर्म ग्रथों में क्षत्रिय वर्ण के लिए निर्देशित कर्मक्षेत्र को स्वीकार किया और दूसरी ओर देशकाल के परिप्रेक्ष्य में नए आदर्श स्थापित किए।

उनके जीवन के मूल रूप से तीन आदर्श हैं- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता। एक निश्‍चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श पर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु के हाथों में सौंपकर तपस्या करने चले गए। अपनी जिंदगी के अंतिम समय में महाराज ने अपने ज्येष्ट पुत्र विभू को सारी जिम्मेदारी सौंप कर वानप्रस्थ आश्रम अपना लिया।

आज भी इतिहास में महाराज अग्रसेन परम प्रतापी, धार्मिक, सहिष्णु, समाजवाद के प्रेरक महापुरुष के रूप में उल्लेखित हैं। देश में जगह-जगह अस्पताल, स्कूल, बावड़ी, धर्मशालाएँ आदि अग्रसेन के जीवन मूल्यों का आधार हैं और ये जीवन मूल्य मानव आस्था के प्रतीक हैं।

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