जन्म दिवस हर दिन पावन

जुझारू प्रचारक खेमचंद शर्मा “10 सितम्बर/जन्म-दिवस”

जुझारू प्रचारक खेमचंद शर्मा “10 सितम्बर/जन्म-दिवस”


संघ और विश्व हिन्दू परिषद में कार्यरत वरिष्ठ प्रचारक खेमचंद शर्मा का जन्म नौएडा के पास रबूपुरा गांव में 10 सितम्बर, 1954 को हुआ था। उनके पिता श्री मंगूदत्त शर्मा एवं माता श्रीमती भगवती देवी थीं। चार भाई-बहिनों में वे सबसे छोटे थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। 1966 में उन्होंने शाखा जाना शुरू किया। संघ संस्थापक डा. हेडगेवार और श्री गुरुजी की जीवनी से प्रभावित होकर 1976-77 में बी.एस-सी. करते हुए ही वे प्रचारक बन गये। उन्होंने 1977, 78 तथा 1980 में संघ के तीनों वर्ष के प्रशिक्षण प्राप्त किये। वे बचपन से ही जुझारू प्रवृत्ति के थे। अतः पहले उन्हें अलीगढ़ में विद्यार्थी शाखाओं का और फिर 1981 में आगरा जिला प्रचारक बनाया गया।

1980 के दशक में पंजाब का माहौल बहुत खराब था। पाकिस्तान की शह पर उग्रवादी घटनाएं हर दिन हो रही थीं। बसों में से उतारकर हिन्दुओं का मारा जा रहा था। अतः हिन्दू वहां से पलायन करने लगे। ऐसे में संघ ने पूरे देश से कुछ जुझारू प्रचारकों को वहां भेजने का निर्णय लिया। हर प्रांत से एक प्रचारक की मांग की गयी। पश्चिम उत्तर प्रदेश से तीन प्रचारकों ने वहां जाने की इच्छा व्यक्त की। उनमें से खेमचंद भी एक थे। तब वे मुरादाबाद के जिला प्रचारक थे। संघ नेतृत्व ने उन्हें वहां भेजने का निर्णय लिया।

उस समय पाकिस्तान की सीमा से लगा तरनतारन उग्रवाद से सबसे अधिक प्रभावित था। खेमचंद जी ने स्वेच्छा से उसे ही चुना। अतः उन्हें वहां का जिला प्रचारक बनाया गया। उस दौरान शाखा और हिन्दू कार्यकर्ताओं पर हमले होते थे। एक बार आतंकियों ने संघ के कुछ कार्यकर्ताओं का अपहरण कर लिया। खेमचंद जी उनके गढ़ में घुसकर कार्यकर्ताओं को निकाल लाये। वे जान की परवाह किये बिना उग्रवादियों और शासन-प्रशासन से भिड़ जाते थे।

उन्हीं दिनों विश्व हिन्दू परिषद के नेतृत्व में राममंदिर आंदोलन उभार पर था। अतः 1990 में उन्हें पंजाब में बजरंग दल का काम दिया गया। इससे अयोध्या के हर अभियान में पंजाबी युवा आने लगे। पंजाब मीट्स लिमिटेड तथा डेरा बस्सी कत्लखाने को बंद कराने के लिए हुए आंदोलन में उनकी बड़ी भूमिका रही। 1997 में उन्हें जम्मू में वि.हि. प. का संगठन मंत्री बनाया गया। इसके बाद 1997 में पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के संगठन मंत्री तथा फिर 2005 में केन्द्रीय मंत्री बनाकर मठ-मंदिर आयाम का काम दिया गया। अब उनका केन्द्र दिल्ली में वि.हि.प का केन्द्रीय कार्यालय रामकृष्णपुरम् हो गया। कुछ समय वे इंद्रप्रस्थ क्षेत्र में सह संगठन मंत्री भी रहे। स्पष्टवादी होने के बावजूद वे निर्णय से पूर्व संगठन में हर स्तर पर विचार-विमर्श जरूर करते थे।

2009 में उन्हें गोरक्षा आयाम की जिम्मेदारी दी गयी। यह विषय स्थापना काल से ही वि.हि.प. की प्राथमिकता में रहा है। इस दौरान उन्होंने महिला एवं युवा वर्ग को गोरक्षा और गोसेवा से जोड़ा। उनका आग्रह रहता था कि गोशाला में पंचगव्य उत्पाद बनें, जिससे वह आत्मनिर्भर हो। गोवंश आधारित खेती, हर किसान के घर गाय, पंचगव्य से मानव, पशु तथा खेती की दवाइयां, बैलचालित कृषि उपकरण तथा हर तरह के प्रशिक्षण वर्ग पर भी वे जोर देते थे। भोजन से पूर्व गोग्रास निकालने का उनका नियम था।

खेमचंद जी स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहते थे। साल में एक-दो बार पूरे शरीर का निरीक्षण-परीक्षण भी करवाते थे। अति प्रातः ही वे स्नान,  ध्यान, पूजा, प्राणायाम आदि कर लेते थे। फिर भी वे धीरे-धीरे कई रोगों के शिकार हो गये। आठ फरवरी को उन्हें सांस लेने में परेशानी अनुभव हुई। वे वायरल बुखार से भी पीडि़त थे। सबके आग्रह पर भी वे अस्पताल नहीं गये और अगले दिन जाने को कहा; पर नौ फरवरी, 2023 को ब्रह्ममुर्हूत में हुए भीषण हृदयाघात से अपने कमरे में ही उनका प्राणांत हो गया। इस प्रकार बिना किसी को कष्ट दिये वे अनंत की यात्रा पर चले गये।

(संदर्भ: गोसम्पदा मार्च 2023)

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