अब राज्यपाल तक पहुंचेगी जनजाति समाज की हुंकार
-जनजाति सुरक्षा मंच ने किया कार्यकर्ताओं के धैर्य और निष्ठा का अभिवादन
-55810 से ज्यादा जनजाति बंधुओं ने भरी डीलिस्टिंग की हुंकार
-4192 गांवों से आए जनजाति बंधु, 12723 महिलाएं
उदयपुर, 22 जून। जनजाति सुरक्षा मंच राजस्थान का प्रतिनिधिमण्डल शीघ्र ही राज्यपाल को ज्ञापन देने जयपुर जाएगा। ज्ञापन में संविधान के आर्टिकल 342 में संशोधन की मांग की जाएगी। जिस तरह आर्टिकल 341 में एससी के लिए यह स्पष्ट प्रावधान है कि धर्म परिवर्तन करने पर एससी के रूप में प्रदत्त लाभ उसे देय नहीं हैं, ठीक वैसा ही प्रावधान एसटी के लिए आर्टिकल 342 में जोड़ने की मांग की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि इसी मांग को लेकर देश भर में जनजाति सुरक्षा मंच के आह्वान पर चल रहे आंदोलन के तहत आठवीं राज्य स्तरीय हुंकार डीलिस्टिंग महारैली राजस्थान के उदयपुर में 18 जून को आहूत की गई थी। हल्दीघाटी युद्ध विजय दिवस पर हुई इस हुंकार डीलिस्टिंग महारैली में प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद राजस्थान भर से 55 हजार 810 जनजाति बंधु शामिल हुए। इनमें शहर से शामिल हुए प्रबुद्ध नागरिकों की संख्या शामिल नहीं है। साथ ही विभिन्न जनप्रतिनिधियों के करीब साढ़े पांच सौ वाहन अलग से आए, जिनकी संख्या भी शामिल नहीं है।
जनजाति सुरक्षा मंच के मार्गदर्शक व सामाजिक कार्यकर्ता भगवान सहाय ने गुरुवार को बताया कि जनजाति क्षेत्र की 81 पंचायत समितियों की 1403 ग्राम पंचायतों के 4192 गांवों से 276 बसों, 1929 छोटे वाहन व 800 से अधिक दुपहिया वाहनों में माध्यम से 55 हजार 810 जनजाति बंधुओं ने डीलिस्टिंग के लिए हुंकार भरी। इस संख्या में 12 हजार 723 महिलाएं शामिल हैं।
इससे पूर्व, उन्होंने बुधवार रात को हुंकार डीलिस्टिंग महारैली की विभिन्न व्यवस्थाओं में जुटे कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। उन्होंने प्रतिकूल मौसम के बावजूद कार्यकर्ताओं द्वारा संभाले गए व्यवस्थाओं के प्रबंधन को अगले आयोजनों के लिए मील का पत्थर बताया। उन्होंने कहा कि मौसम की अनुकूलता रहती तो यह संख्या दो से ढाई गुना होती। उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि 38 बसों को मंगलवाड़ चौराहे पर रोक दिया गया था। डूंगरपुर से आ रही 200 गाड़ियां अहमदाबाद हाईवे पर जाम में फंस गईं। मौसम की वजह से पाली में 16 से 18 जून तक बसों का संचालन रोका गया था। ऐसे में लोगों को उदयपुर पहुंचने में मुश्किल हुई। इतना ही नहीं, केवड़े की नाल में एक ट्रोला अचानक आड़ा खड़ा हो गया। इससे सलूम्बर से आने वाले वाहन अटक गए। बड़ी मुश्किल से मार्ग खुला। उन्होंने कहा कि मंच को ऐसा महसूस हुआ कि प्रकृति के साथ प्रशासन ने भी उनकी परीक्षा ली।
भगवान सहाय ने कविता की पंक्ति ‘नाविक की धैय परीक्षा क्या यदि लहरें प्रतिकूल न हों’, सुनाते हुए कार्यकर्ताओं के धैर्य और निष्ठा का अभिवादन किया। भगवान सहाय ने कहा कि मौसम की प्रतिकूलता के चलते एक समय तो यह लगा था कि कार्यक्रम को कुछ दिन आगे बढ़ दिया जाए, लेकिन कार्यकर्ताओं ने इसे ईश्वर की परीक्षा मानकर परिस्थितियों को स्वीकार करने का संकल्प जताया और उदयपुर में हुंकार डीलिस्टिंग महारैली ऐतिहासिक उदाहरण बन गई।
भगवान सहाय ने कार्यकर्ताओं का अभिनंदन करते हुए कहा कि प्रतिकूल मौसम में कार्यकर्ताओं ने भीगते हुए काम किया। यहां तक कि मातृशक्ति ने भी मंच के आगे भीगते हुए ही पुष्प सज्जा की। कुछ कार्यकर्ता सर्दी-जुकाम से भी जकड़ गए हैं। कार्यकर्ताओं के समर्पण ने सभी के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया है। प्रतिकूल मौसम के मद्देनजर सुबह उदयपुर पहुंचने वाले जनजति बंधुओं को बिस्किट वितरण भी किया गया। इसमें भी कार्यकर्ता भीगे। हजारों पैकेट बांटना आसान नहीं था। इसके बाद शहर से भोजन पैकेट एकत्र करना और उन्हें हर बंधु तक पहुंचाना भी दुष्कर कार्य ही था। उन्होंने शहरवासियों का भी आभार व्यक्त किया कि उन्होंने जनजाति बंधुओं के लिए भोजन पैकेट तैयार किए और कहीं-कहीं कार्यकर्ताओं के नहीं पहुंच पाने पर फोन करके उन्होंने भी निर्धारित स्थान पर भोजन पैकेट पहुंचाए। भोजन पैकेट व्यवस्था में बड़ी संख्या में किशोरवय कार्यकर्ता भी जुटे। करीब 60 हजार से अधिक भोजन पैकेट एकत्र हुए और वितरित हुए। मार्ग में फंसे बंधुओं तक भी भोजन पैकेट पहुंचाए गए। उन्होंने बताया कि उदयपुर आने वाली बसों में से तीन-चार बसें रवाना होने से पहले खराब भी हो गईं। इनके लिए तुरंत बस की व्यवस्था भी कार्यकर्ताओं ने अपने सम्पर्कों से की।
उल्लेखनीय है कि जनजाति समाज के धर्मान्तरण विषय को लेकर जनजाति नेता व तत्कालीन सांसद डॉ. कार्तिक उरांव ने 1968 में ही चिंता शुरू कर दी थी। इस संबंध में सन 1968 में डॉ. कार्तिक उरांव ने इस संवैधानिक विसंगति को दूर करने के प्रयास किए एवं विस्तृत अध्ययन भी किया। जनजाति नेता डॉ. कार्तिक उरांव ने 1968 में किए अपने अध्ययन में पाया कि 5 प्रतिशत धर्मांतरित ईसाई, अखिल भारतीय स्तर पर कुल एसटी की लगभग 70 प्रतिशत नौकरियां, छात्रवृत्तियां एवं शासकीय अनुदान ले रहे थे, साथ ही प्रति व्यक्ति अनुदान आवंटन का अंतर उल्लेखनीय रूप से गैर-अनुपातिक था। इस प्रकार की मूलभूत विसंगति को दूर करने के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति का गठन हुआ जिसने अनुशंसा की कि अनुच्छेद 342 से धर्मांतरित लोगों को एसटी की सूची से डीलिस्ट करने के लिए राष्ट्रपति के 1950 वाले आदेश मे संसदीय कानून द्वारा संशोधन किया जाना जरूरी है। इस मसौदे पर तत्कालीन 348 सांसदगण का समर्थन भी प्राप्त हुआ था, इस विचाराधीन मसौदे पर कानून बनने से पूर्व ही लोकसभा भंग हो गई थी। इसी को लेकर वर्ष 2009 में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के सदस्य एंथ्रोपोलोजिस्ट पद्मश्री डॉ. जेके बजाज का अध्ययन भी सामने आया जिसमें इस गैर-आनुपातिक और दोहरा लाभ हड़पने की समस्या की विकरालता को उजागर किया गया। इस अध्ययन में कहा गया कि धर्मांतरित ईसाई एवं मुसलमान अनुसूचित जनजातियों की अधिकांश सुविधाओं को हड़प रहे हैं और दोहरा लाभ ले रहे हैं। गांव-गांव में धर्मान्तरण के कारण पारिवारिक समस्याएं भी आ रही हैं। कहीं-कहीं बहन भाई के बीच राखी का त्योहार खत्म हो गया है।
इतना ही नहीं, जनजाति सुरक्षा मंच जनजाति समाज में धर्मान्तरण को न सिर्फ जनजाति समाज व संस्कृति के लिए, बल्कि राष्ट्र के लिए भी खतरा मानता है। इसी को लेकर यह संविधान के आर्टिकल 342 में संशोधन की मांग को लेकर आंदोलन किया जा रहा है। इस वर्ष के अंत तक करीब 22 राज्यों में रैलियां करने का आह्वान किया गया है। मंच का कहना है कि यदि सरकार 2024 के आमचुनाव से पहले जनजाति समाज की मांग नहीं मानती तब डॉ. कार्तिक उरांव की जयंती पर दिल्ली में जंतर-मंतर पर देश का जनजाति समाज हुंकार भरेगा।
