पण्डित रवि शंकर प्रसाद “7 अप्रैल/जन्मदिन”
पं रवि शंकर का जन्म संस्कृति-संपन्न काशी में 7 अप्रैल, सन् 1920 को हुआ था। उनके पिता प्रतिष्ठित बैरिस्टर थे और राजघराने में उच्च पद पर कार्यरत थे। रविशंकर जब केवल दस वर्ष के थे तभी संगीत के प्रति उनका लगाव शुरू हुआ।
इनकी आरंभिक संगीत शिक्षा घर पर ही हुई। उस समय के प्रसिद्ध संगीतकार और गुरु उस्ताद अलाउद्दीन ख़ां को इन्होंने अपना गुरु बनाया। यहीं से आपकी संगीत यात्रा विधिवत आरंभ हुई। वह लंबे समय तक तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ, किशन महाराज और सरोद वादक उस्ताद अली अकबर ख़ान के साथ जुड़े रहे। अठारह वर्ष की उम्र में उन्होंने नृत्य छोड़कर सितार सीखना शुरू किया।
रविशंकर संगीत की परम्परागत भारतीय शैली के अनुयायी थे। उनकी अंगुलियाँ जब भी सितार पर गतिशील होती थी, सारा वातावरण झंकृत हो उठता था। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भारतीय संगीत को ससम्मान प्रतिष्ठित करने में उनका उल्लेखनीय योगदान है। उन्होंने कई नई-पुरानी संगीत रचनाओं को भी अपनी विशिष्ट शैली से सशक्त अभिव्यक्ति पदान की।
रवि शंकर ने भारत, कनाडा, यूरोप तथा अमेरिका में बैले तथा फ़िल्मों के लिए भी संगीत कम्पोज किया। इन फ़िल्मों में ‘चार्ली’, ‘गांधी’ और ‘अपू त्रिलोगी’ भी शामिल हैं।
हिन्दुस्तानी संगीत को रविशंकर ने रागों के मामले में भी बड़ा समृद्ध बनाया है। यों तो उन्होंने परमेश्वरी, कामेश्वरी, गंगेश्वरी, जोगेश्वरी, वैरागी तोड़ी, कौशिकतोड़ी, मोहनकौंस, रसिया, मनमंजरी, पंचम आदि अनेक नये राग बनाए हैं, पर वैरागी और नटभैरव रागों का उनका सृजन सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो, जब रेडियो पर कोई न कोई कलाकार इनके बनाए इन दो रागों को न गाता-बजाता हो।
प्रारम्भ में पंडित जी ने अमेरिका के प्रसिद्ध वायलिन वादक येहुदी मेन्युहिन के साथ जुगलबन्दियों में भी विश्व-भर का दौरा किया। तबला के महान् उस्ताद अल्ला रक्खा भी पंडित जी के साथ जुगलबन्दी कर चुके हैं। वास्तव में इस प्रकार की जुगलबन्दियों में ही उन्होंने भारतीय वाद्य संगीत को एक नया आयाम दिया। पंडित जी ने अपनी लम्बी संगीत-यात्रा में अपने और अपने सम्बन्ध में कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखी हैं। ‘माई म्यूजिक माई लाइफ’ के अतिरिक्त उनकी ‘रागमाला’ नामक पुस्तक विदेश के एक सुप्रसिद्ध प्रकाशक ने प्रकाशित की है।
पंडित रवि शंकर को विभिन्न विश्वविद्यालयों से डाक्टरेट की 14 मानद उपाधियां मिल चुकी हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत संगीतज्ञों की एक संस्था के सदस्य रहे।
रवि शंकर को तीन ग्रेमी पुरस्कार मिले हैं।
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, पद्म भूषण, पद्म विभूषण तथा भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न भी मिल चुका है।
रवि शंकर को भारतीय संगीत ख़ासकर सितार वादन को पश्चिमी दुनिया के देशों तक पहुंचाने का श्रेय भी दिया जाता है।
1982 के दिल्ली एशियाड (एशियाई खेल समारोह) के ‘स्वागत गीत’ को उन्होंने कई स्वर प्रदान किये थे। उनको देश-विदेश में कई बार सम्मानित किया जा चुका है।
1986 में राज्यसभा के मानद सदस्य चुनकर भी उन्हें सम्मानित किया गया।
पंडित रविशंकर ने 92 वर्ष की उम्र में 11 दिसम्बर 2012 मे अमेरिका में सैन डिएगो के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली।
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