अयोध्या आंदोलन के साक्षी प्रकाश अवस्थी “16 अक्तूबर/जन्म-दिवस”
कुछ लोगों में संघ कार्य की लगन इतनी अधिक होती है कि वे शिक्षा पूरी किये बिना ही कर्मक्षेत्र में कूद पड़ते हैं। श्री प्रकाश नारायण अवस्थी ऐसे ही एक वरिष्ठ प्रचारक थे। उनका जन्म ग्राम देवमई (तहसील बिंदकी, फतेहपुर हतुआ, उ.प्र.) में 16 अक्तूबर, 1937 (आश्विन शुक्ल 11) को हुआ था। तीन भाई-बहिनों में उनका नंबर बीच का था।
उनके पिता श्री बच्चू लाल जी फतेहपुर में केन्द्र सरकार के खाद्य विभाग में कार्यरत थे; पर जब उनका स्थानांतरण दिल्ली किया गया, तो उन्होंने वहां जाने से मना कर दिया। अतः उन्हें इस नौकरी से त्यागपत्र देना पड़ा। कुछ समय बाद उन्हें कानपुर के हीरालाल खन्ना इंटर काॅलिज में अध्यापन कार्य मिल गया। अतः पूरा परिवार फिर कानपुर आकर रामबाग मौहल्ले में रहने लगा।
प्रकाश जी की प्राथमिक शिक्षा फतेहपुर में ही हुई। इसके बाद इंटर तक की पढ़ाई उन्होंने हीरालाल काॅलिज से की। फतेहपुर में आठ वर्ष की अवस्था से ही वे शाखा जाने लगे थे। कानपुर आकर तो वे रामबाग शाखा में बिल्कुल रम ही गये। उनके चाचा श्री विजय बहादुर अवस्थी भी संघ में सक्रिय थे। अतः उनके प्रारम्भिक संघ जीवन पर चाचा जी का बहुत प्रभाव पड़ा।
उन दिनों कानपुर में श्री अशोक सिंहल संघ के प्रचारक थे। प्रकाश जी की उनसे बहुत निकटता थी। यह स्नेह संबंध जीवन भर बना रहा। संघ से पहला प्रतिबंध उठने पर काम के विस्तार के लिए युवा प्रचारकों की बहुत जरूरत थी। यद्यपि तब संघ का समाज में बहुत विरोध था। सरकारी दुष्प्रचार के कारण लोग संघ को गांधी जी का हत्यारा मानते थे; पर प्रकाश जी यह चुनौती स्वीकार की और 17-18 वर्ष की आयु में इंटर करते ही प्रचारक बन गये।
प्रकाश जी का विवाह छोटी आयु में ही तय हो गया था। घर वालों के दबाव में ‘वरीच्छा’ की रस्म भी हो गयी थी; पर संघ कार्य को अपने जीवन का लक्ष्य बना चुके प्रकाश जी ने उसी रात में घर छोड़ दिया। प्रचारक जीवन में वे इटावा, फरुखाबाद, उरई, जालौन, आजमगढ़, बहराइच, कालपी आदि स्थानों पर रहे। 1975 में आपातकाल के समय वे उरई में प्रचारक थे। वहीं से उनकी गिरफ्तारी हुई और फिर पूरे समय वे जेल में ही रहे।
इटावा की राजनीति में उन दिनों मुलायम सिंह का प्रभाव बढ़ रहा था। अतः प्रकाश जी का उनसे कई बार टकराव हुआ। मुलायम सिंह ने बातचीत के लिए एक बार उन्हें घर भी बुलाया; पर प्रकाश जी वहां नहीं गये। 1990-91 में उन पर लखनऊ में ‘लोकहित प्रकाशन’ की जिम्मेदारी भी रही।
उन दिनों राममंदिर आंदोलन तेजी पर था। आंदोलन के केन्द्र कारसेवकपुरम् (अयोध्या) में एक वरिष्ठ कार्यकर्ता की जरूरत थी। अतः प्रकाश जी को वहां भेज दिया गया। फिर तो आंदोलन की सभी महत्वपूर्ण घटनाओं के वे साक्षी बने। इस दौरान कारसेवकपुरम् पर भारी दबाव रहता था। कभी देश-विदेश के पत्रकार आते थे तो कभी पुलिस और प्रशासन। प्रकाश जी को सबसे जूझना पड़ता था। मंदिर के लिए विशाल स्तम्भ एवं शिलाएं भी बन रही थीं। संघ और विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारी तथा साधु-संत भी आते रहते थे। प्रकाश जी बिना थके सबके भोजन, आवास और यातायात आदि का प्रबंध करते थे।
प्रकाश जी व्यवस्था और हिसाब के मामले में बहुत कठोर थे। जो तय किया, उस पर वे डटे रहते थे। धीरे-धीरे उन पर आयु का प्रभाव होने लगा। उच्च रक्तचाप के कारण 2004 में उन पर फालिज का हमला हुआ, जिससे फिर वे उबर नहीं पाये। 25 अगस्त, 2018 को अपनी कर्मभूमि अयोध्या में ही उनका निधन हुआ। उनकी अंतिम यात्रा में संघ और परिषद के कार्यकर्ताओं के साथ अयोध्या की जनता और साधु-संत भी बड़ी संख्या में शामिल हुए।
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