हुंकार डीलिस्टिंग महारैली – जनजाति बंधुओं के भोजन पैकेट के लिए थैलियां छपकर तैयार
-उदयपुर के घर-घर में पहुंचेंगी थैलियां, हर घर से भोजन पैकेट का होगा आग्रह
-18 जून को जनजाति बंधुओं की मेहमाननवाजी करेगा उदयपुर शहर
उदयपुर, 13 जून। जनजाति सुरक्षा मंच राजस्थान के बैनर तले 18 जून को उदयपुर में होने वाली हुंकार डीलिस्टिंग महारैली की तैयारियां जोरों पर है। इस रैली में आ रहे एक लाख से अधिक जनजाति बंधुओं की मेजबानी उदयपुर शहर करेगा। उनके लिए पेयजल से लेकर भोजन की व्यवस्था के लिए उदयपुर शहर जुटेगा। घर-घर से भोजन पैकेट तैयार होंगे। भोजन पैकेट के लिए थैलियां छपकर उदयपुर आ चुकी हैं। अगले दो दिन में इन थैलियों का वितरण शुरू होगा।
जनजाति सुरक्षा मंच राजस्थान के प्रदेश संयोजक लालूराम कटारा ने बताया कि उदयपुर शहर के घर-घर तक भोजन पैकेट तैयार करने के आग्रह के साथ थैलियां पहुंचाई जाएंगी। इन थैलियों पर 18 जून के कार्यक्रम के संक्षिप्त विवरण के साथ भोजन सामग्री की भी जानकारी अंकित की गई है। सभी से आग्रह किया जाएगा कि एक थैली में 10 पूड़ी या छह परांठे, केरी की लौंजी, गुड़, हरी मिर्च कटकी ही रखें ताकि गर्मी के मौसम का असर भोजन पर न पड़े। इन थैलियों पर मनुहार दर्शाती दो पंक्तियां ‘‘धन्य धन्य मेवाड़ धरा है, तुम आए प्रिय पावणा। जीमो भोेजन म्हे जीमावां, हरख हरख मन भावणा।।’’ भी अंकित की गई हैं। भोजन के बाद थैली को सड़क पर नहीं फेंके जाने का भी आग्रह थैली पर अंकित किया गया है।
हुंकार महारैली के संयोजक नारायण गमेती ने बताया कि जनजाति बंधुओं के उदयपुर आगमन के साथ ही गर्मी के मद्देनजर जगह-जगह पेयजल की व्यवस्था रहेगी। इसके लिए शहरवासियों सहित विभिन्न सामाजिक व स्वयंसेवी संस्थाएं आगे आई हैं। शहर में पांच स्थानों से निकलने वाली जनजाति बंधुओं की शोभायात्रा के स्वागत के साथ मार्ग में जगह-जगह शीतल पेय की व्यवस्था रहेगी।

उल्लेखनीय है कि डी-लिस्टिंग महारैली जनजाति समाज के हक और उनकी संस्कृति को बचाने के लिए आहूत की जा रही है। इस महारैली के माध्यम से यह मांग उठाई जाएगी कि जनजाति समाज के जिस व्यक्ति ने अपना धर्म बदल लिया है, उनका एसटी का स्टेटस हटाया जाए और एसटी के नाते संविधान प्रदत्त सुविधाएं नहीं दी जाएं। जब अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के लिए संविधान में यह नियम लागू है तो अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के लिए भी यह प्रावधान संविधान में जोड़ा जाना चाहिए। धर्म बदलने वाले अपनी चतुराई से दोहरा लाभ उठा रहे हैं, जबकि मूल आदिवासी अपनी ही मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है।
इस संबंध में सन 1968 में डॉ. कार्तिक उरांव, जनजाति नेता/पूर्व सांसद ने, इस संवैधानिक/कानूनी विसंगति को दूर करने के प्रयास किए एवं विस्तृत अध्ययन भी किया। जनजाति नेता डॉ. कार्तिक उरांव ने 1968 में किए अपने अध्ययन में पाया कि 5 प्रतिशत धर्मांतरित ईसाई, अखिल भारतीय स्तर पर कुल एसटी की लगभग 70 प्रतिशत नौकरियां, छात्रवृत्तियां एवं शासकीय अनुदान ले रहे, साथ ही प्रति व्यक्ति अनुदान आवंटन का अंतर उल्लेखनीय रूप से गैर-अनुपातिक था। इस प्रकार की मूलभूत विसंगति को दूर करने के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति का गठन हुआ जिसने अनुशंसा की कि अनुच्छेद 342 से धर्मांतरित लोगों को एसटी की सूची से बाहर करने के लिए राष्ट्रपति के 1950 वाले आदेश मे संसदीय कानून द्वारा संशोधन किया जाना जरूर है। इस मसौदे पर तत्कालीन 348 सांसदगण का समर्थन भी प्राप्त हुआ था। परंतु, सन 1970 के दशक इस हेतु विचाराधीन मसौदे पर कानून बनने से पूर्व ही लोकसभा भंग हो गई।
सन 2001 की जनगणना और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के सदस्य एंथ्रोपोलोजिस्ट पद्मश्री डॉ. जेके बजाज का 2009 का अध्ययन भी इस गैर-आनुपातिक और दोहरा लाभ हड़पने की समस्या की विकरालता को उजागर करते हैं कि धर्मांतरित ईसाई एवं मुसलमान अनुसूचित जनजातियों के अधिकांश सुविधाओं को हड़प रहे हैं और दोहरा लाभ ले रहे हैं। धर्मान्तरण के कारण गांव-गांव में पारिवारिक समस्याएं भी आ रही हैं। कहीं-कहीं बहन भाई के बीच राखी का त्योहार खत्म हो गया है। इन सभी विडम्बनाओं का समाधान संविधान के आर्टिकल 342 में संशोधन है जिसके लिए पूरे देश में जनजाति समाज एकजुट हुआ है और अन्य राज्यों में राज्यस्तरीय डीलिस्टिंग रैलियों के बाद अब 18 जून को राजस्थान में हुंकार डीलिस्टिंग महौरली आहूत की गई