पंडित श्रद्धाराम शर्मा (लोकप्रिय आरती ओम जय जगदीश हरे के रचयिता) “24 जून/ पुण्यतिथि”

पंडित श्रद्धाराम शर्मा (लोकप्रिय आरती ओम जय जगदीश हरे के रचयिता) “24 जून/ पुण्यतिथि”

पं. श्रद्धाराम शर्मा का जन्म जालंधर के फिल्लौर में 30 सितंबर 1837 को पंजाब में हुआ था। उनके पिता जयदयालु खुद एक अच्छे ज्योतिषी थे। उन्होंने अपने बेटे का भविष्य पढ़ लिया था और भविष्यवाणी की थी कि यह एक अद्भुत बालक होगा। बालक श्रद्धाराम को बचपन से ही धार्मिक संस्कार विरासत में मिले थे। उन्होंने सात साल की उम्र तक गुरुमुखी में पढाई की। दस साल की उम्र में संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी तथा ज्योतिष की पढाई शुरु की और कुछ ही वर्षो में वे इन सभी विषयों के निष्णात हो गए।उनका विवाह सिख महिला महताब कौर के साथ हुआ था।पं. श्रद्धाराम सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। अपनी विलक्षण प्रतिभा और ओजस्वी वक्तृता के बल पर उन्होने पंजाब में नवीन सामाजिक चेतना एवं धार्मिक उत्साह जगाया जिससे आगे चलकर आर्य समाज के लिये पहले से निर्मित उर्वर भूमि मिली।

पं. श्रद्धाराम ने पंजाबी (गुरूमुखी) में ‘सिक्खां दे राज दी विथियाँ’ और ‘पंजाबी बातचीत’ जैसी पुस्तकें लिखीं। अपनी पहली ही किताब ‘सिखों दे राज दी विथिया’ से वे पंजाबी साहित्य के पितृपुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। इस पुस्तक मे सिख धर्म की स्थापना और इसकी नीतियों के बारे में बहुत सारगर्भित रूप से बताया गया था। पुस्तक में तीन अध्याय है। इसके अंतिम अध्याय में पंजाब की संकृति, लोक परंपराओं, लोक संगीत आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई थी। अंग्रेज सरकार ने तब होने वाली आईसीएस (जिसका भारतीय नाम अब आईएएस हो गया है) परीक्षा के कोर्स में इस पुस्तक को शामिल किया था

1865 में ब्रिटिश सरकार ने उनको फुल्लौरी से निष्कासित कर दिया और आसपास के गाँवों तक में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। जबकि उनकी लिखी किताबें स्कूलों में पढ़ाई जाती रही। पं॰ श्रद्धाराम खुद ज्योतिष के अच्छे ज्ञाता थे और अमृतसर से लेकर लाहौर तक उनके चाहने वाले थे इसलिए इस निष्कासन का उन पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उनकी लोकप्रियता और बढ गई। लोग उनकी बातें सुनने को और उनसे मिलने को उत्सुक रहने लगे। इसी दौरान उन्होंने हिन्दी में ज्योतिष पर कई किताबें भी लिखी। लेकिन एक इसाई पादरी फादर न्यूटन जो पं॰ श्रद्धाराम के क्रांतिकारी विचारों से बेहद प्रभावित थे, के हस्तक्षेप पर अंग्रेज सरकार को थोड़े ही दिनों में उनके निष्कासन का आदेश वापस लेना पड़ा। पं॰ श्रद्धाराम ने पादरी के कहने पर बाइबिल के कुछ अंशों का गुरुमुखी में अनुवाद किया था। पं॰ श्रद्धाराम ने अपने व्याख्यानों से लोगों में अंग्रेज सरकार के खिलाफ क्रांति की मशाल ही नहीं जलाई बल्कि साक्षरता के लिए भी ज़बर्दस्त काम किया।

1870 में उन्होंने “ओम जय जगदीश” की आरती की रचना की। पं॰ श्रद्धाराम की विद्वता, भारतीय धार्मिक विषयों पर उनकी वैज्ञानिक दृष्टि के लोग कायल हो गए थे। जगह-जगह पर उनको धार्मिक विषयों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता था और तब हजारों की संख्या में लोग उनको सुनने आते थे। वे लोगों के बीच जब भी जाते अपनी लिखी ओम जय जगदीश की आरती गाकर सुनाते। उनकी आरती सुनकर तो मानो लोग बेसुध से हो जाते थे। आरती के बोल लोगों की जुबान पर ऐसे चढ़े कि आज कई पीढियाँ गुजर जाने के बाद भी उनके शब्दों का जादू कायम है। 1877 में भाग्यवती नामक एक उपन्यास प्रकाशित हुआ (जिसे हिन्दी का पहला उपन्यास माना जाता है), इस उपन्यास की पहली समीक्षा अप्रैल 1887 में हिन्दी की मासिक पत्रिका प्रदीप में प्रकाशित हुई थी। पं॰ श्रद्धाराम के जीवन और उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों पर गुरू नानक विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के डीन और विभागाध्य्क्ष श्री डॉ॰ हरमिंदर सिंह ने ज़बर्दस्त शोध कर तीन संस्करणों में श्रद्धाराम ग्रंथावली का प्रकाशन भी किया है। उनका मानना है कि पं॰ श्रद्धाराम का यह उपन्यास हिन्दी साहित्य का पहला उपन्यास है।

हिन्दी के जाने माने लेखक और साहित्यकार पं. रामचंद्र शुक्ल ने पं॰ श्रद्धाराम शर्मा और भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिन्दी के पहले दो लेखकों में माना है। पं.श्रद्धाराम शर्मा हिन्दी के ही नहीं बल्कि पंजाबी के भी श्रेष्ठ साहित्यकारों में थे, लेकिन उनका मानना था कि हिन्दी के माध्यम इस देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुँचाई जा सकती है।
24 जून 1881 को लाहौर में पं.श्रद्धाराम शर्मा का देहावसान हुआ।

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