श्रुतम्

राम-14 “सत्यसंध पालक श्रुति सेतु”

राम-14 “सत्यसंध पालक श्रुति सेतु”

राम का आदर्श लक्ष्मण रेखा की मर्यादा है। लाँघी तो अनर्थ। सीमा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन।
राम जाति, वर्ग से परे हैं। नर, वानर, आदिवासी, पशु, मानव, दानव सभी से उनका निकट रिश्ता है। वे अगड़े- पिछड़े से ऊपर हैं। निषादराज हों या सुग्रीव, शबरी हो या जटायु, सभी को साथ ले चलने वाले वे अकेले देवता हैं। भरत के लिए आदर्श भाई। हनुमान के लिए स्वामी। प्रजा के लिए वह नीतिकुशल न्यायप्रिय राजा हैं।

परिवार नाम की संस्था में उन्होंने नए संस्कार जोड़े। पति-पत्नी के प्रेम की नई परिभाषा दी। जब सीता का अपहरण हुआ, तो वे व्याकुल थे। रो-रोकर पेड़, लता, पहाड़ से उनका पता पूछ रहे थे। इससे विपरीत जब कृष्ण धरती पर आए तो उनकी प्रेमिकाएँ असंख्य थीं। केवल एक रात्रि में सोलह हजार गोपिकाओं के साथ उन्होंने रास रचाया था। लेकिन राम की मर्यादा ने पिता की अटपटी आज्ञा का पालन कर पिता-पुत्र के संबंधों को नई ऊँचाई दी।

इसीलिए डॉ. राम मनोहर लोहिया भारत माँ से माँगते हैं- “हे भारत माता ! हमें शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का हृदय दो, राम का कर्म और वचन दो।” लोहियाजी अनीश्वरवादी थे। पर धर्म और ईश्वर पर उनकी सोच मौलिक थी।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video