रामचन्द्र दत्तात्रेय रानडे “3 जुलाई /जन्मदिन”
रामचन्द्र दत्तात्रेय रानडे का जन्म 3 जुलाई 1886 को जमखंडी, बगलकोट जिला, कर्नाटक नामक स्थान में हुआ। इनके पिता दत्तात्रेय रानाडे रामदुर्ग छोड़कर जमखंडी में आ बसे थे। रामचन्द्र रानडे 1903 में डेकन कॉलेज में प्रविष्ट हुए। 1907 में वे बी. ए. द्वितीय श्रेणीय में पास हुए। फिर प्रो॰ वुडहाऊस के सम्पर्क में आकर वे पारमार्थिक क्षेत्र में दर्शनशास्त्र का अध्ययन करते रहे।
सन् 1911 में फर्ग्युसन कॉलेज में अंग्रेजी के ट्यूटर का काम स्वीकार किया। दर्शनशास्त्र लेकर सन् 1914 में एस. ए. में प्रथम श्रेणी में प्रथम आकर उन्होंने चान्सलर का स्वर्णपदक प्राप्त किया। अब वे तत्वज्ञान के प्राध्यापक के रूप में फर्ग्युसन कॉलेज में नियुक्त हुए। सन् 1921 में उनका स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया, इसलिए डी. ई. सोसायटी के सांगली कॉलेज में उनकी नियुक्ति हुई। दर्शनशास्त्र विषय में उनकी बड़ी गहरी पैठ थी तथा वे स्वयं भी एक बड़े तत्वज्ञ थे। सन् 1924 में डी. ई. सोसायटी से उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। ‘उपनिषदों का तत्वज्ञान’ नामक ग्रंथ की रचना का कार्य वे अपने पुणे में स्थित ‘अध्यात्म भवन’ में करते रहे। इसी समय उन्होंने अध्यात्म विद्यापीठ की स्थापना की। इसकी परामर्शदात्री समिति में डॉ॰ जयकर, डॉ॰ राधाकृष्णन, डॉ॰ बेलवेलकर, न्यायमूर्ति भवानीशंकर नियोगी आदि थे। भारतीय दर्शन का एक विस्तृत कोशनुमा इतिहास प्रकाशित करने की 16 खण्डों की योजना बनाई गई। इसके तीन खंड प्रकाशित हो चुके हैं, जिनके नाम ये हैं-
(1) A Constructive Survey of Upanishadic Philosophy 1926.
(2) History of Indian Philosophy : Creative Period 1927.
(3) Philosophical and Other Essays, part I. 1956.
उनके अन्य ग्रंथ जो प्रकाशित हुए हें ये हैं-
- Carlyle’s Signs of Times & Characteristics 1916.
- Mysticism in Maharashtra, 1933.
- Path way to God in Hindi literature, 1954.
- परमार्थ सोपान, 1954
- The Conception of Spirtual life in Mahatama Gandhi & Hindu Saints, 1956
तथा मराठी में लिखे ग्रंथ- - ज्ञानेश्वर वचनामृत
- संतवचनामृत
- तुकाराम वचनामृत
- रामदासवचनामृत
- एकनाथ वचनामृत
- Mysticims in Karnataka,
- The Bhagvadgita as a philosophy of God realisation,
- The Vedenta as culmination of Indian Philosophical Thought,
इसके सिवा दर्जनों स्फुट लेख और निबन्ध पत्र पत्रिकाओं में दार्शनिक विचारों पर प्रकाशित हुए हैं। 1922 से 1927 तक निंवाद में रहकर अनेक दार्शनिक ग्रंथों का उन्होंने निर्माण किया। निंबाद में उन्होंने अध्यात्म विद्यापीठ स्थापित किया था।1 दिसम्बर, 1927 को दर्शन विभाग के अध्यक्ष तथा प्रोफेसर के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में नियुक्त हुए। बीस साल तक इस पद को उन्होंने विभूषित किया। बाद में वे वाइसचांसलर भी बने। निवृत्त हो जाने पर 26 अक्टूबर 1947 में सांगली में अध्यात्म विद्यामंदिर की स्थापना की। 6 जून 1957 को उनका स्वर्गवास हो गया।
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