सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-26
जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए एक सेना खड़ी की…
संबूधन फोंगलो बहुत बड़े शिव भक्त थे। उन्हें विश्वास था कि महादेव की कृपा से वे निश्चित रूप से अंग्रेजों को अपनी मातृभूमि से निकालने में सफल हो जाएँगे।
उनका अपना घर माहुर घाटी में सेमदीखोर में था, परंतु उन्होंने सन् 1881 में दीमासा कछारी राज्य की किसी समय में राजधानी रहे माईबांग में अपना मुख्य प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया।
(माईबांग वर्तमान में असम के दीमा हसाओ जिले में है। यहाँ कई प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर हैं, जिनका सम्बन्ध दीमासा कछारी राजाओं से है।)
दीमासा कछारी के आम लोगों ने भी संबूधन फोंगलो का पूरा साथ दिया। उन्होंने संबूधन को धन और संघर्ष के लिए अस्त्र शस्त्र बनाने की सामग्री उपलब्ध कराई।
अभी प्रशिक्षण चलते हुए कुछ ही दिन हुए थे कि अंग्रेजों को संबूधन फोंगलो की इन गतिविधियों के बारे में पता चल गया।
गुंजुंग के अंग्रेज सब डिविजनल ऑफिसर ने संबूधन फोंगलो को अपने समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया। संबूधन ने इस आदेश पर कोई ध्यान नहीं दिया। इस पर रुष्ट हुए सब डिविजनल ऑफिसर ने संबूधन फोंगलो के गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया, पर संबूधन पर इसका भी कोई फर्क नहीं पड़ा।
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