आत्मनिर्भर भारत तथा हमारी अवधारणा-18
एक समय था जब भारत में नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे उत्कृष्ट विश्व स्तर के विश्वविद्यालय थे। दुनियां भर के देशों से लोग शिक्षा प्राप्त करने भारत आते थे। इस देश के समाज का अपने ‘स्वत्व’ विस्मृत होने के कारण ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट भारत शिक्षा के क्षेत्र में बेहाल हो गया। अपने-अपने चरित्र से, ज्ञान से दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को साक्षर करने का संकल्प भारत का दर्शन था।
आज देश पुनः अपने स्वत्व को पहचानकर शिक्षा के क्षेत्र में अपनी विशेषता लिए निरंतर आगे बढ़ रहा है। पहले देश में केवल 19 मेडिकल कॉलेज थे। केवल 1 हजार बच्चों का चयन एम.बी.बी.एस. में हो पाता था। आज देश में 550 से अधिक मेडिकल कॉलेज हैं। 65 से अधिक पीजी और शोध संस्थान हैं। वर्ष 2020 में एम.बी.बी.एस. की सीट 80 हजार लगभग थीं। वर्तमान में बढ़कर 1 लाख से अधिक है।
हमारे देश के 75 हजार डॉक्टर केवल चार देशों अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में सेवा दे रहे हैं। इतना ही नर्सिंग स्टाफ है। सन् 1947 में बड़े-से-बड़े जिले के अंदर एक-दो एम.बी.बी.एस. डॉक्टर मिलते थे। आज तेजी से बदलती जा रही है। आगामी 10 वर्षों में भारत सर्वाधिक विशेषज्ञ चिकित्सकों वाला दुनियां का प्रथम देश होगा। यही स्थिति नर्सिंग स्टाफ की होगी। यह आसान काम नहीं था, जो हमने कर दिखाया। इसमें भारत के हजारों लोगों का परिश्रम है।
भारत की गरीबी और स्वास्थ्य को देखकर दुनिया को आश्चर्य होता था। लोग कहते थे कि ऐसी हालत में तो अनेक बीमारियों में करोड़ों लोग मर जाएँगे। पर ऐसा नहीं हुआ। आज भारत अनेक बीमारियों से पार पा चुका है। कोरोना जैसी असाध्य, खतरनाक बिमारी के काल में अफरा-तफरी के वातावरण में हमने कुशल प्रबंधन करते हुए अल्प समय में स्वदेशी टीका निर्माण कर देश की आवश्यकता को पूरा किया, साथ ही अन्य जरूरतमंद देशों को भी मानवीय आधार पर सप्लाई किया।