संघनिष्ठ जीवन के प्रतीक सुरेशराव केतकर “28 सितम्बर/जन्म-दिवस”

संघनिष्ठ जीवन के प्रतीक सुरेशराव केतकर “28 सितम्बर/जन्म-दिवस”

संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री सुरेश रामचंद्र केतकर का जन्म 28 सितम्बर, 1934 को महाराष्ट्र प्रान्त के पुणे नगर में हुआ था। उनका संघ जीवन भी पुणे से ही प्रारम्भ हुआ और वे वहां की शिवाजी मंदिर सायं शाखा के मुख्यशिक्षक बने। शरीर सौष्ठव एवं शारीरिक कार्यक्रमों के प्रति उनका शुरू से ही रुझान था। शाखा के कार्यक्रमों के साथ अन्य खेलकूद व शारीरिक गतिविधियों में भी उनकी बहुत रुचि थी। इस बारे में उनकी जानकारी भी काफी गहन होती थी।

बी.एस-सी. तथा बी.पीएड. करने के बाद वे एक वर्ष तक अध्यापक रहे और फिर उसे छोड़कर 1959 में प्रचारक बन गये। यह यात्रा क्रमशः सांगली जिला प्रचारक से प्रारम्भ होकर विभाग, प्रांत और क्षेत्र प्रचारक; तथा फिर अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख, सह सरकार्यवाह, अ.भा.प्रचारक प्रमुख से लेकर केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य तक अविराम चलती रही। 1983 में पुणे की तलजाई पहाड़ियों पर हुए विशाल प्रांतीय शिविर तथा 1993 में लातूर में आये भूकम्प के बाद हुए सेवा कार्याें में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

सुरेशराव अपने स्वास्थ्य के प्रति बहुत जागरूक रहते थे। कठोर व्यायाम और संतुलित भोजन से वे सदा स्वस्थ बने रहे। गणवेश के अलावा उन्होंने पैरों में कभी मोजे नहीं पहनेे। पहाड़ी क्षेत्रों में सब स्वाभाविक रूप से गरम पाजामा पहनते हैं। अधिक ऊंचे स्थानों पर तो उसके नीचे एक दूसरा चुस्त ऊनी पाजामा भी पहना जाता है; पर सुरेशराव ने वहां भी सदा धोती और बिना मोजे के जूते ही प्रयोग किये। वे प्रायः रात का भोजन नहीं करते थे। इसके साथ ही वे गणेश चतुर्थी, एकादशी और मंगल के व्रत भी रखते थे।

सुरेशराव की कार्यशैली भाषण की बजाय निजी व्यवहार से दूसरों को सिखाने की थी। वे हर कार्यक्रम में समय से पांच मिनट पहले पहुंच जाते थे। इससे किसी को समयपालन की बात कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। जब कोई और कार्यकर्ता बैठक लेता या बौद्धिक देता था, तो वे बहुत वरिष्ठ होने पर भी सब श्रोताओं के साथ सामने जमीन पर ही बैठते थे। कई बार उनसे आग्रह किया गया कि वे मंच पर या नीचे ही कुरसी पर बैठें, पर वे नहीं माने।

सुरेशराव मूलतः शारीरिक विभाग के व्यक्ति थे। शारीरिक के प्रत्येक विषय की वे पूरी जानकारी रखते थे। केन्द्रीय जिम्मेदारियों पर रहने के बावजूद प्रशिक्षण वर्गों में गण लेने में वे कभी संकोच नहीं करते थे। संघ में जब नियुद्ध विषय शुरू हुआ, तो उसमें एकरूपता लाने के लिए 1982-83 में नागपुर में एक प्रशिक्षण वर्ग हुआ। प्रतिदिन आठ घंटे अभ्यास वाले उस वर्ग में सुरेशराव पूरे समय उपस्थित रहे। उनके भाषण भी सूत्रबद्ध, तर्कपूर्ण, सटीक, स्पष्ट और पूरी तरह विषय केन्द्रित होते थे। केन्द्रीय कार्यकर्ताओं पर संघ विचार के कई संगठनों की देखभाल की जिम्मेदारी भी रहती है। सुरेशराव ने इस नाते लम्बे समय तक भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ तथा संस्कार भारती जैसे बड़े धरातल वाले संगठनों की देखभाल की।

केन्द्रीय दायित्व पर रहते हुए कई वर्ष तक उनका केन्द्र लखनऊ रहा। यहां रहते हुए उन्होंने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के प्रत्येक जिले का प्रवास किया। उ.प्र. जनसंख्या के हिसाब से देश का सबसे बड़ा राज्य है। यहां की राजनीतिक गतिविधियां सारे देश को प्रभावित करती हैं। अतः सुरेशराव को राज्य की सत्ता और भारतीय जनता पार्टी में चलने वाली गुटबाजी और उठापटक को भी झेलना पड़ा। उन्होंने यथासंभव इनके समाधान का प्रयास भी किया।

सुरेशराव कर्मठता और समर्पण के मूर्तिमान स्वरूप थे। वृद्धावस्था में जब उन्हें प्रवास में कष्ट होने लगा, तो वे सक्रिय जिम्मेदारियों से मुक्त हो गये। सोलापुर में विभाग प्रचारक रहते हुए उनके प्रयास से कुछ सेवाभावी चिकित्सकों ने लातूर जैसे अत्यन्त पिछड़े क्षेत्र में ‘विवेकानंद चिकित्सालय’ की स्थापना की थी। वहां पर ही 16 जुलाई, 2016 को उन्होंने अंतिम सांस ली।

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