जन्म दिवस हर दिन पावन

द हीरो ऑफ चिट्टागोंग : सूर्य सेन “22 मार्च/जन्मदिन”


द हीरो ऑफ चिट्टागोंग : सूर्य सेन “22 मार्च/जन्मदिन”

महान देशभक्त क्रांतिकारी सूर्य सेन को अंग्रेजों ने मरते दम तक असहनीय यातनाएं दी थीं। अविभाजित बंगाल के चटगांव चिट्टागोंग (अब बांग्लादेश में) विद्रोह के अमर नायक बने सूर्य सेन उर्फ सुरज्या सेन का जन्म 22 मार्च, 1894 को हुआ था। स्वतंत्रता सेनानी सूर्यसेन को द हीरो ऑफ चिट्टागोंग के नाम से भी जाना जाता है। भारत की स्वाधीनता की पृष्ठभूमि में सूर्य सेन जैसे कई महान क्रांतिकारियों ने आजादी की खातिर खून के कड़वे घूंट पीये। इसीलिए तो कहते हैं कि भारत को आजादी यों ही नसीब नहीं हुई।

सूर्यसेन बहरामपुर कॉलेज में बीए की पढ़ाई के दौरान प्रसिद्ध क्रांतिकारी संगठन युगांतर से जुड़े। वर्ष 1918 में चटगांव वापस आकर उन्होंने स्थानीय युवाओं को संगठित करने के लिए युगांतर पार्टी की स्थापना की। शिक्षक बनने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चटगांव जिलाध्यक्ष भी बने। उन्होंने धन और हथियारों की कमी को देखते हुए अंग्रेज सरकार से गुरिल्ला युद्ध किया। उन्होंने दिन-दहाड़े 23 दिसंबर, 1923 को चटगांव में असम-बंगाल रेलवे के ट्रेजरी ऑफिस को लूटा। किंतु उन्हें सबसे बड़ी सफलता चटगांव आर्मरी रेड के रूप में मिली, जिसने अंग्रेजी सरकार को झकझोर दिया था।

1930 की चटगांव आर्मरी रेड के नायक मास्टर सूर्य सेन ने अंग्रेज सरकार को सीधी चुनौती दी थी। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर चटगांव को अंग्रेजी हुकूमत के शासन के दायरे से बाहर कर लिया था और भारतीय ध्वज को फहराया था। उन्होंने न केवल क्षेत्र में ब्रिटिश अधिकारियों के घर और दफ्तरों की संचार सुविधा ठप कीं, बल्कि रेलवे, डाक और टेलीग्राफ सब संचार एवं सूचना माध्यमों को ध्वस्त करते हुए चटगांव से अंग्रेज सरकार के संपर्क तंत्र को ही खत्म कर दिया था। इन्होंने चटगांव के सहायक सैनिक शस्त्रागार पर कब्जा कर लिया। किन्तु दुर्भाग्यवश उन्हें बंदूकें तो मिलीं, किंतु उनकी गोलियां नहीं मिल सकीं। क्रांतिकारियों ने टेलीफोन और टेलीग्राफ के तार काट दिए और रेलमार्गों को अवरुद्ध कर दिया।

अपनी साहसी प्रवृत्ति के कारण सूर्य सेन अंग्रेजी सरकार को छकाते रहे। 1930 से 1932 के बीच 22 अंग्रेज अधिकारी और उनके लगभग 220 सहायकों की हत्या करके अंग्रेजी सरकार को भागने के लिए मजबूर किया। हालांकि, इस दौरान मास्टर सूर्यसेन ने अनेक संकट झेले। अंग्रेज सरकार ने सूर्यसेन पर 10 हजार रुपये का ईनाम भी घोषित कर दिया था। इसके कारण एक धोखेबाज साथी नेत्र सेन की मुखबिरी पर 16 फरवरी, 1933 को अंग्रेज पुलिस ने सूर्य सेन को गिरफ्तार कर लिया।

ब्रितानी तानाशाही की अमानवीय बर्बरता और क्रूरता की हद तब देखी गई जब सूर्यसेन को फांसी के फंदे पर लटकाया जा रहा था। फांसी के ऐन वक्त पहले उनके हाथों के नाखून उखाड़ लिए गए, ताकि दर्द के मारे उनके हाथ बगावत न कर सके। उनके दांतों को तोड़ दिया गया, ताकि वह अपनी अंतिम सांस तक वंदेमातरम का जयघोष न कर सकें। सूर्यसेन के संघर्ष की बानगी पढ़कर ही रूह कांप उठती है। लेकिन उन्होंने यह सब मातृभूमि के लिए हंसते हुए झेला था।

12 जनवरी, 1934 को चटगांव सेंट्रल जेल में सूर्य सेन को साथी तारकेश्वर के साथ फांसी की सजा दी गई। ब्रितानी हुकूमत की क्रूरता और अपमान की पराकाष्ठा यह थी की उनकी मृत देह को भी धातु के बक्से में बंद करके बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया ताकि वह कैसे भी जीवित न बच सकें। आजादी के बाद चटगांव सेंट्रल जेल के उस फांसी के तख्त को बांग्लादेश सरकार ने मास्टर सूर्यसेन स्मारक घोषित किया। बाद में भारत सरकार ने भी मास्टर दा की स्मृति में डाक टिकट जारी किया था।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video