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पेड़ वाली अम्मा बीरमती देवी “3 मार्च/जन्म-दिवस”

पेड़ वाली अम्मा बीरमती देवी “3 मार्च/जन्म-दिवस”

पर्यावरण के बारे में अधिकांश लोग केवल भाषणों में चिन्ता व्यक्त कर अपना काम पूरा समझ लेते हैं; पर कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो शासन और जनता को गाली देने की बजाय धरातल पर ठोस काम कर रहे हैं। इनमें से ही एक हैं श्रीमती बीरमती देवी, जो ‘पेड़ वाली अम्मा’ के नाम से प्रसिद्ध हैं।

बीरमती देवी का जन्म तीन मार्च, 1942 को ग्राम बुढ़पुर (जिला रिवाड़ी, हरियाणा) में श्री महासिंह एवं सरिया देवी के घर में हुआ। गांव और खेतों के बीच पली होने के कारण उन्हें पेड़, पौधे, जल, जंगल और पशुओं से बहुत प्यार था।

उनसे छोटी चार बहनें और एक भाई भी था। पांच कन्याओं के कारण उनकी मां को परिवार में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था। अतः बीरमती ने महिला उत्थान के लिए काम करने की बात बचपन में ही ठान ली। कक्षा आठ तक की पढ़ाई के बाद बीरमती देवी का विवाह ग्राम कादीपुर, जिला महेन्द्रगढ़ निवासी हरदयाल सिंह से हो गया। पुरुषवादी मानसिकता वाली ससुराल में छोटी-छोटी बात पर कई बार उनकी पिटाई हुई।

वह छोटे परिवार की समर्थक थीं; पर एक पुत्र के लिए परिवार के दबाव में उन्हें पांच बेटियों को जन्म देना पड़ा। उन्होंने योजनापूर्वक अपनी सब बहनों तथा कई रिश्तेदारों की कन्याओं का विवाह कादीपुर में ही करा दिया। इससे समाज सुधार की उनकी बातों केे समर्थन में बोलने वालों की संख्या गांव में बढ़ गयी।

अब बीरमती देवी ने महिलाओं को संगठित करना प्रारम्भ किया। इसका विरोध होना ही था; पर उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया। धीरे-धीरे गांव के पुरुष भी उनके साथ आ गये और 1977 में वे गांव की महिला पंच चुनी गयीं। इसके बाद तो उन्होंने हर सामाजिक कुरीति को मिटाने का संकल्प ले लिया।

बीरमती देवी ने सबसे पहले अपने गांव में परिवार कल्याण कार्यक्रमों के प्रति महिलाओं को जागरूक किया। इस पर जिला प्रशासन ने उन्हें सम्मानित कर पूरे जिले में इसी शैली से काम करने का निश्चय किया। फिर उन्होंने प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के अन्तर्गत महिलाओं को पढ़ाना प्रारम्भ किया। अल्प बचत एवं स्वयं सहायता समूह के माध्यम से अधिकांश महिलाएं घरेलू कारोबार करने लगीं। उन्होंने महिलाओं को पशुओं के लिए ऋण भी दिलवाये।

धुएं वाले चूल्हे के दुष्प्रभाव देखकर उन्होंने धूम्ररहित चूल्हे लगवाये। बाल विवाह, दहेज की अनुचित मांग, जल संरक्षण, कन्या भू्रण हत्या, एड्स, पर्दा प्रथा, नशा मुक्ति जैसे विषयों पर नुक्कड़ नाटक तथा लोकगीतों द्वारा उन्होंने जन जागरण किया। लोकगीतों के लेखन और गायन के साथ वे अभिनय भी कर लेती हैं। उन्होंने कई बार मानव तथा पशु चिकित्सा शिविर भी लगवाये।

हरियाणा में कन्याओं का अनुपात पूरे देश में सबसे कम है। बीरमती देवी के प्रयास से उनके निजामपुर विकास खंड में यह प्रति 1,000 पर 810 से बढ़कर 907 हो गया। 1988-89 में सरपंच रहते हुए उन्होंने वन विभाग के सहयोग से 35 एकड़ भूमि पर पेड़ लगवाये। उनके कामों के लिए जिला और राज्य स्तर पर शासन की ओर से उन्हें कई बार सम्मानित किया गया है।

हर ग्रामवासी के साथ ही पेड़-पौधे और पशु-पक्षियों को भी मातृवत स्नेह देने वाली बीरमती देवी ने सिद्ध किया है कि शुद्ध मन और दृढ़ संकल्प के साथ किया जाने वाला कार्य अवश्य सफल होता है। आयु के ढलान पर भी उनका उत्साह बना हुआ है। ईश्वर उन्हें स्वस्थ रखे, यही कामना है।

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