बाजी राउत-6

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 13

बाजी राउत ने अंग्रेजों को ब्राह्मणी नदी को पार कराने से यह कहते हुए कि “निर्दोष जनता की हत्या करने वालों को मैं अपनी नाव से कभी भी नदी पार नहीं करा सकता”- स्पष्ट मना कर दिया
छोटे से बालक के मुँह से यह बात सुनकर अंग्रेज भौंचक्के रह गए। उन्हें एक छोटे से बालक से इस तरह के निर्भीक उत्तर की अपेक्षा कदापि नहीं थी।
उन्होंने बाजी राउत की ओर बन्दूकें तान दीं और उन्हें फिर से पार ले जाने के लिए बोला। बाजी राउत ने एक बार फिर उसी निर्भीकता से वही प्रत्युत्तर दिया।

तिलमिला कर अंग्रेज सिपाहियों में से एक ने उन्हें धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया और दूसरे ने बंदूक की बट से उनके सिर पर जोर से प्रहार किया। प्रहार से बाजी राउत का सर फट गया और खून बहने लगा।
अंग्रेज उन्हें वहीं छोड़कर नाव की रस्सी खोलने लगे और नदी पार जाने की तैयारी करने लगे। बाजी राउत ने अपनी चोट की परवाह नहीं की, और नदी में उतरकर नाव को भरसक रोकने की कोशिश करते हुए जोर-जोर से अपने साथियों को बुलाने के लिए चिल्लाने लगे। उनके सिर से खून बह रहा था,परंतु फिर भी वह अपने हाथों से नाव को पानी में जाने से रोकते हुए चिल्ला रहे थे।
उनकी आवाज से कुछ दूर सो रहे उनके साथी नाविक और प्रजा मंडल के लोग जाग गए और दौड़कर वहाँ पहुँचे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *