सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 10

अंग्रेजों के विरुद्ध भारत की पहली मानव बम..

सेनापति कुयिली ने तब एक निर्णय लिया और मंदिर में मौजूद एक बड़े बर्तन में रखा घी अपने ऊपर उड़ेल लिया, अंग्रेज सैनिक भौंचक्के हो उन्हें देख रहे थे कि आखिर वे करना क्य चाहती है। कुयिली अब अपने हाथ में एक जलता हुआ दीपक लेकर बारूदखाने की ओर दौड़ पड़ी। अंग्रेज हतप्रभ थे कि वह करना क्या चाह रही थी।
बात समझ में आते ही वहाँ हड़कंप मच गया और वे उन्हें रोकने की कोशिश करने लगे। तभी कुयिली ने वह दीपक अपने शरीर से लगा कर स्वयं को आग लगा ली। बारूदखाने की ओर आने वाले अंग्रेज सैनिक अचानक रुक गए और बाहर की ओर भागने लगे। कैप्टन बेंजॉर के कुछ लोगों ने कुयिली को रोकने की चेष्टा की, परंतु कुयिली ने उनसे बचकर सीधा बारूद खाने के अंदर छलांग लगा दी। और फिर, एक भयंकर धमाके के साथ बारूद में आग लग गई। अंग्रेजों का सारा गोला बारूद और उनकी बंदूकें नष्ट हो गई।

कुयिली ने अपना बलिदान देकर अंग्रेजों को उस युद्ध में इतना कमजोर कर दिया की रानी की सेना आसानी से वह युद्ध जीत गई।
कैप्टन बैंजॉर ने आत्मसमर्पण कर दिया और अपने अपने प्राणों की भीख माँगने लगा। रानी वेलु नचियार ने उसे कारागृह में डलवा दिया और बाद में सशर्त रिहा कर दिया।

रानी वेलु नचियार ने अपना राज्य तो वापस पा लिया। परंतु अपनी प्रिय सलाहकार और वीर महिला योद्धा सेनापति कुयिली को सदा-सर्वदा के लिए खो दिया।
कृतज्ञ भारतीय समाज का वीरांगना कुयिली को कोटि कोटि नमन्।

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