लोकतंत्र-प्रेमी न्यायाधीश नेकश्याम शमशेरी

आपातकाल में मेरठ की जेल में सैकड़ों लोकतंत्र प्रेमी बन्द थे। शासन चाहता था कि वे वहीं सड़ जाएं; पर उन दिनों मेरठ के कई न्यायाधीशों में एक थे श्री नेकश्याम शमशेरी। उनके पास जो भी वाद जाता था, वे उसे जमानत दे देते थे। यद्यपि इसमें बहुत खतरा था; पर वे सदा न्याय के पथ पर डटे रहे।
नेकश्याम जी का जन्म उ.प्र. के मुरादाबाद नगर में 22 अप्रैल, 1930 को न्यायालय में कार्यरत श्री राधेशरण भटनागर एवं श्रीमती चमेली देवी के घर में हुआ था। के पास ‘शमशेर’ गांव के मूल निवासी होने से ये परिवार ‘शमशेरी’ कहलाया। पांच भाई और तीन बहिनों वाला ये भरापूरा परिवार था।
मेधावी नेकश्याम जी ने सभी परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में भी प्रथम स्थान पर रहकर उत्तीर्ण कीं। उनका नामपट आज भी राजकीय इंटर कॉलिज, मुरादाबाद में लगा है। आगरा, प्रयाग और फिर मुरादाबाद से उच्च शिक्षा पाकर उन्होंने कुछ वर्ष वकालत की। 1956 में न्यायिक परीक्षा में प्रथम स्थान पाकर वे न्यायाधीश बने। इससे पूर्व वे प्रशासनिक सेवा की लिखित परीक्षा उत्तीर्ण कर चुके थे; पर संघ से सम्पर्क के कारण उन्हें साक्षात्कार में नहीं चुना गया।
नेकश्याम जी मुरादाबाद में 1940 में स्वयंसेवक बने। 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के समय वहां एक जुलूस में तिरंगा लिये युवक को पुलिस की गोली लग गयी। ऐसे में बालक होते हुए भी उन्होंने झंडा थाम लिया। 1948 में संघ पर प्रतिबंध के समय वे आगरा में बी.एस-सी. कर रहे थे। कांग्रेसी गुडों ने वहां संघ कार्यालय पर हमला कर दिया। नेकश्याम जी तथा अन्य स्वयंसेवकों ने उनका डटकर मुकाबला किया। उस मारपीट की चोट उनके चेहरे पर अंत तक बनी रही। प्रतिबंध के विरोध में वे डेढ़ महीने आगरा जेल में भी रहे।
1957 में उनका विवाह शारदा जी से हुआ। उनकी पत्नी बहुत धार्मिक एवं सात्विक स्वभाव की थीं। अतः उनके चारों बच्चों पर देश एवं धर्मनिष्ठा के गहरे संस्कार पड़े। न्यायिक सेवा के कारण वे संघ की दैनिक गतिविधियों से दूर रहे; पर संघ के प्रति प्रेम उनके मन में बना रहा, जो आपातकाल में निरपराध स्वयंसेवकों की रिहाई के रूप में प्रकट हुआ। वे कानपुर, बरेली, हरदोई, ललितपुर, बनारस और मेरठ में न्यायाधीश रहे। सभी जगह उन्होंने अपने आचरण से एक आदर्श न्यायाधीश की छाप छोड़ी।
1988 में मेरठ में विशेष न्यायाधीश के पद से वे सेवानिवृत्त हुए। लम्बे समय तक संघ के काम से अलग रहने के कारण उन्होंने वृद्धावस्था में तीनों वर्ष के संघ शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण लिया और फिर संघ के काम में जुट गये। पहले उन्हें मेरठ प्रांत में ‘सेवा भारती’ की जिम्मेदारी दी गयी। इसके बाद वे मेरठ प्रांत कार्यवाह, प्रांत संघचालक, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र संघचालक तथा फिर संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। वे उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय क्षेत्रों में भी गये। सेवा कार्य में रुचि होने के कारण वे प्रवास में इन कामों पर विशेष ध्यान देते थे। 2007 में वे नागपुर में प्रौढ़ स्वयंसेवकों के तृतीय वर्ष के वर्ग में सर्वाधिकारी थे।
इतनी ऊंचे और प्रतिष्ठित पद पर रहकर भी उनका जीवन सादगी से परिपूर्ण था। अवकाश प्राप्ति के बाद वे निःसंकोच खाकी नेकर पहन कर सायं शाखा में जाते थे। बच्चों से मिलना, खेलना और हंसी-मजाक करना उन्हें अच्छा लगता था। देहरादून में एक कार्यकर्ता ने अज्ञानवश रेलगाड़ी में आरक्षण के लिए उनकी आयु अधिक लिखा दी; लेकिन उन्होंने उस टिकट पर जाना स्वीकार नहीं किया। उनके तीनों पुत्र अच्छे काम और स्थानों पर हैं। वे जब उनके पास जाते थे, तो पड़ोस के सभी लोगों और परिवारों में घुलमिल जाते थे।
25 नवम्बर, 2015 को अपने बड़े पुत्र के मुम्बई स्थित निवास पर उनका निधन हुआ।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *