सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 16
मिजोरम की 84 वर्षीय मुखिया जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध झुकने से स्पष्ट मना किया…
रोईपुल्लानी और उनके बेटे ललथुआमा ने कैप्टन शेक्सपियर के उसके पास आने के बुलावे की बात को मानने से स्पष्ट मना कर दिया, और युद्ध की तैयारी आरम्भ कर दी।
84 वर्ष की आयु में रोईपुल्लानी ने अपने लोगों को अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार करना आरम्भ कर दिया।
अंग्रेज बिल्कुल नहीं चाहते थे कि रोईपुल्लानी की देखा-देखी दूसरे मिजो सरदार भी उनके विरुद्ध उठ खड़े हों, इसलिए उन्होंने संधि करने के बहाने गाँव पर छापा मारकर रोईपुल्लानी और उनके पुत्र को बंदी बना लिया। बाद में दोनों को चटगाँव जेल भेज दिया गया।
चटगाँव जेल में ही दो वर्ष पश्चात् 3 जनवरी, 1895 को 86 वर्ष की उम्र में रोईपुल्लानी की मृत्यु हो गई। उनके पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए मिजोरम लाया गया।
ऐसी स्वाभिमानी, साहसी और बहादुर वीरांगना रोईपुल्लानी को हमारा कोटि कोटि नमन् । भारतीय इतिहास में आपकी दुर्भाग्यपूर्ण गुमनामी आज पुनर्जीवित है।
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