वीरापांड्या कट्टाबोम्मन-9

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-20

जिन्होंने ब्रिटिश राज का विरोध किया और उन्हें दो बार हराया…

अंग्रेज कट्टाबोम्मन के एक अन्य साथी सुंदरपांड्यन नायक्कर को भी पकड़ने में सफल हो गए। उनकी हत्या करने में अंग्रेजों ने वीभत्सता और क्रूरता की सभी सीमाएँ पार कर दीं। उनको पकड़ कर उनके सिर को एक दीवार पर तब तक मारा गया जब तक कि उनका सिर फट नहीं गया और अंदर के सारे अंग बाहर नहीं आ गए।

अंग्रेजों ने वीरापांड्या को पकड़ने के प्रयास और तेज कर दिए। उनके सिर पर भारी इनाम भी घोषित कर दिया गया। वीरापांड्या बचते-बचाते इधर-उधर छुपते रहे। वे पुडुक्कोट्टाई के निकट तिरुकलमबुर के जंगलों में पहुँचे।

पुडुक्कोट्टाई के पलयक्कर ने एक देशभक्त भारतीय की मदद करने के बजाय अंग्रेजों का पक्ष लिया और इनाम और अंग्रेजों की मित्रता के लालच में वीरापांड्या कट्टाबोम्मन को पकड़वा दिया।

दिखावे का एक झूठा मुकदमा चलाकर अंग्रेजों ने वीरापांड्या कट्टाबोम्मन को 16 अक्टूबर, 1799 को एक इमली के पेड़ से फाँसी पर लटका दिया गया। उनकी आयु उस समय 39 वर्ष की थी। पंचालनकुरीची के किले को ध्वस्त करके मिट्टी में मिला दिया गया, उनकी और उनके परिवार की सारी संपत्ति जब्त कर ली गई।

आजादी के इस महानायक हुतात्मा वीरापांड्या कट्टाबोम्मन को हमारा शत शत नमन्।

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