श्रुतम्

कान्होजी आंग्रे-5

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-21

मराठा नौसेनाध्यक्ष जिन्हें युरोपीय नौसैनिक शक्तियां कभी हरा नहीं पाईं…

कान्होजी आंग्रे ने कोलाबा को अपना मुख्य गढ़ बनाया और एक अन्य गढ़ विजयदुर्ग में बनाया। विजयदुर्ग मुंबई से 485 किलोमीटर दूर है। कुछ समय पश्चात् उन्होंने अलीबाग और पूर्णगढ़ तक अपने दुर्ग बना लिए। अब यहाँ से उन्होंने अंग्रेज, डच और पुर्तगाली जहाजों पर हमला करके लूटना और कर वसूल करना आरम्भ कर दिया।

अगले 40 वर्षों तक संपूर्ण पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्र पर कान्होजी आंग्रे का अविवादित और एकछत्र शासन चलता रहा। उनके अपने बेड़े में लगभग 80 जहाज थे। इसके अतिरिक्त बहुत सारी मछली-मार नौकाएँ भी थी जिन्हें स्थानीय कोली मछुआरे चलाते थे।

स्थानीय लोगों की मदद से तटवर्ती क्षेत्र को इतने अच्छे से जानने के कारण ही कान्होजी आंग्रे स्वयं को विदेशी नौसेनाओं से अग्रणी रख पाए। वे बहुत तीक्ष्ण बुद्धि और साहसिक दिमाग के धनी थे। नौसैनिक रणनीतियाँ बनाने में वे निपुण थे क्योंकि उनका बचपन ही वहाँ बीता था। उन्होंने कई बार अंग्रेज, पुर्तगाली, डच, मुगल, सिद्दीयों और वाडी के सावंतो को मात दी।
सन् 1698 से लेकर सन् 1729 में अपनी मृत्यु तक उन्होंने पश्चिमी तट की लहरों पर अपना एकछत्र राज चलाया।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video