भारत को रक्तरंजित करने का षड्यंत्र-26

विध्वंसक चौकड़ी के निशाने पर आदिवासी (वनवासी)-9

नागालैंड

तथाकथित, तीसरे जगत (Third World) में कोई भी ईसाई देश नहीं है। पूरी दुनिया में ईसाई धर्मांतरण की कमान संभालने वालों की आँख में ये बात हमेशा से खटकती रही है।
अपनी इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए ये मिशनरी नागालैंड में अलगाववादी गुटों को कथित रूप से गोला-बारूद एवं हथियार उपलब्ध कराते रहे।
आरंभ में मिशनरियों ने सुरक्षा बलों या फिर पृथक नागालिम-विरोधी शक्तियों के विरुद्ध इन आतंकवादी गुटों के लिए मुखबिर का काम तक किया। परिणाम ये हुआ की अलग नागालिम की माँग को अंतरराष्ट्रीय ईसाई समुदाय से भी समर्थन और सहयोग मिलने लगा।

मई 2007 में अमेरिका से आए एक ‘सद्भावना अभियान (गुडविल मिशन)’ ने नागालैंड का दौरा किया। यह नागालैंड व अमेरिका के ईसाइयों के बीच एकजुटता दिखाने की कोशिश थी। स्वाभाविक रूप से नागालैंड का चर्च भी एकजुटता सिद्ध करने के लिए आगे आया; ‘मसीह के लिए नागालैंड’ की घोषणा की, और इस प्रकार भारतीय संविधान के धर्म-निरपेक्षता के ताने-बाने की धज्जियाँ उड़ा दीं गई। (Rajkhowa, 2008).

नागालैंड के हथियारबंद आतंकवादी संगठन भी ‘मसीह के लिए नागालैंड’ का नारा लगाते हुए आगे आ गए।
चर्च और विद्रोहियों का ये गठबंधन अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में एक सीमा तक अपनी न्याय व्यवस्था लागू करने में सफल हो गया।

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