भारत को रक्तरंजित करने का षड्यंत्र-36

विध्वंसक चौकड़ी के निशाने पर आदिवासी (वनवासी)-19

असम

इस विध्वसंक चौकड़ी ने यहाँ सबका ध्यान मुस्लिमों की सुनियोजित घुसपैठ से भटका कर सताए हुए हिंदू शरणार्थियों पर सफलतापूर्वक केंद्रित कर दिया।
रोचक बात ये है कि विरोध प्रदर्शनों के इस पूरे दौर में इस विध्वंसक चौकड़ी ने एक बार भी न तो मुस्लिम घुसपैठियों का मामला उठाया, न घुसपैठ की बात को स्वीकारा। उन्होंने तो इससे उत्पन्न होने वाले खतरे तक से इंकार किया।

इस प्रकार बहुत चालाकी के साथ हिंदू शरणार्थियों को बलि का बकरा बना लिया। विखंडन की इस तकनीक का प्रयोग करके इन्होंने एक तीर से कई शिकार किए। इससे इनके सभी हितधारकों को लाभ हुआ। साथ ही आगे का काम आसान हो गया। इसकी मदद से ये आसानी से छलावे में आ जाने वाले समाज के अंदर और अधिक घुसपैठ करने में कामयाब रहे। अस्वाभाविक गठबंधन तैयार करने में भी इन्हें मदद मिली।

ये विध्वंसक चौकड़ी उत्तर और मध्य भारत के वनवासियों के बीच भी इसी राह पर काम कर रही है।
नक्सल आंदोलन के पतन के उपरान्त, नक्सलवादियों ने अपने व्यर्थ के सिद्धांतों की कमियों को अनुभव किया। इससे इन्होंने आनन-फानन में अपनी विफल होती रणनीतियों को बदला।
अपने साझा हितों को साधने के लिए अब नक्सली आदिवासी परंपराओं का लाभ उठाते हैं; उन्हें विकृत तक कर डालते हैं।

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