सबके राम-7 “सत्यसंध पालक श्रुति सेतु”

उस समय की विकट परिस्थितियों में जब असुरों का प्रभुत्व था, तब राम जैसा इतना विशद और विलक्षण महानायक कैसे बना होगा ? यह प्रश्न बड़ा है। इसका उत्तर राम की जीवनगाथा में छुपा है। नायकों का इतिहास उनके शौर्य से आँका जाता है। योद्धा ही नायक होते आए हैं।

ऋषि वाल्मीकि ने नायकों की यह नई पहचान भी बता दी। संसार में दो तरह के मनुष्य हैं- एक, अल्पसत्त्व या हीन पराक्रम वाले मनुष्य और दूसरे धीर चरित्रवान मनुष्य, जो धर्म और सत्य के आदर्शों को कर्म मार्ग पर प्रयोग कर दिखाते हैं।

गीता में कहा गया है निर्भयता निरंकुशता की जननी है। लेकिन श्रीराम परम निर्भय होते हुए भी न निरंकुश थे, न अहंकारी। अपार शक्ति सम्पन्नता से भी अहंकार का विशेष रिश्ता हो जाता है, पर राम में अहंकार छू तक नहीं पाया था। अपार शक्ति के उपरांत भी राम मनमाने निर्णय नहीं लेते। वे सामूहिकता को समर्पित विधान की मर्यादा जानते हैं। धर्म और व्यवहार की मर्यादा भी और परिवार का बंधन भी जानते हैं। नर हो या वानर, इन सबके प्रति राम अपने कर्तव्यबोध पर सजग रहते हैं। वे मानवीय करुणा के भाव से युक्त हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *