विकसित भारत 2047 की संकल्पना-7

हमारी शान्तिपाठ प्रार्थना से स्पष्ट है कि हमारा विकास न केवल धारणक्षम व हमें सुख-प्रसन्नता देने वाला चाहिए अपितु वह पर्यावरण का सर्वथा हितैषी भी चाहिए।

पश्चिम ने जो विकास किया, उसमें प्रकृति की घोर उपेक्षा हुई। सैकड़ो वर्षों के जंगल नष्ट कर दिए गए, हजारों वर्षों से दबी खनिज संपदा को केवल कुछ ही दशकों में अपने उपभोग के लिए प्रयोग किया।

प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और मनमाना उपभोग का परिणाम यह हो रहा है कि आज संपूर्ण विश्व वातावरण प्रदूषण से त्रस्त है। सारे विश्व का यह एक प्रमुख विषय (एजेंडा) बन गया है। आज पर्यावरण को लेकर सामान्य व्यक्तियों से संयुक्त राष्ट्र तक चिंतित है। करोड़ों-अरबों डॉलर इस पर खर्च करने की बातें हो रही है। यह पश्चिम का विकास मॉडल सफल होता दिखाई नहीं दे रहा। इन प्रतिमानों ने एकांगी विकास किया है, प्रकृति को नष्ट किया है। इसलिए भारत को विकास प्रक्रिया में समग्रता रखनी ही होगी, यही हमारा गौरवशाली अतीत है।

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