बाजी राउत-3

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 13

अंग्रेजों ने सन् 1920 ई. के दशक के दौरान कई राज्यों में बड़े जमींदारों को अपनी और से कर (Tax) एकत्र करने के काम पर लगा दिया था।
कई लालची जमीदार अंग्रेजों से इनाम और पद के लोभ में अपने ही लोगों पर अत्याचार करके अधिक से अधिक कर एकत्र करने में लग गए थे।
आम जनता और विशेषकर किसानों पर अत्याचार और अनाचार बढ़ते जा रहे थे। गरीब और गरीब होता जा रहा था, जबकि अंग्रेजों के पिठ्ठू लालची जमींदार अपना घर भरने में लगे हुए थे।
जो लोग कर नहीं दे पाते थे, ये जमींदार ऐसे लोगों और किसानों की जमीन हड़प कर लेते थे। विरोध के स्वर को बहुत होते तो डरा धमकाकर दबा दिया जाता था। ब्रिटिश सेना की क्रूरता नयी ऊँचाइयाँ छू रही थीं।

उस समय देश में सबसे बड़ा राज्य बंगाल प्रेसिडेंसी था। बंगाल प्रेसिडेंसी में आज के बिहार, झारखंड और उड़ीसा का भी एक बड़ा हिस्सा आता था। अंग्रेजों ने सन् 1936 ई में भाषाई आधार पर उड़ीसा की स्थापना की, साथ ही जमींदारों की शक्ति को और बढ़ा दिया।
परिणामस्वरुप दबे-कुचले लोगों पर अत्याचार और बढ़ गया, जिससे विशेषकर किसान तो बहुत ही परेशान हो गए। बेगारी और दुराग्रह से लगान वसूली बढ़ती ही चली जा रही थी।

प्रत्यक्ष साक्षी रहे बाजी राउत के बाल मन पर इन सारी घटनाओं का बहुत प्रभाव पड़ा। अंग्रेजों के प्रति उनके मन में क्रोध, घृणा बढ़ती जा रही थी।

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