प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ पर बलीचा हल्दीघाटी के साधकों ने रमी गवरी

प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ पर बलीचा हल्दीघाटी के साधकों ने रमी गवरी

उदयपुर, 21 सितम्बर। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप को समर्पित उदयपुर का प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ शनिवार को चिर-परिचित थाली-मांदल की धुन से गूंज उठा। अवसर था, मेवाड़ के भील आदिवासी समाज के पारम्परिक अनुष्ठान माता गौरज्या की साधना के पर्वोत्सव गवरी का। महाराणा प्रताप के मातृभूमि की स्वतंत्रता के संघर्ष में कदम-कदम के साथी रहे भील आदिवासी समाज ने गौरव केन्द्र परिसर को गवरी के पारम्परिक गीतों और प्रताप के जयकारों से गुंजा दिया। गवरी के इस अनुष्ठान में विविध कथानकों की प्रस्तुति में कालू भील, लक्खी बंजारा, चामुण्डा माता आदि कथानकों से सनातन संस्कृति की प्राचीनता और श्रद्धा को बताया। अस्मिता की रक्षा के लिए बादशाह की फौज से युद्ध के कथानक ने मुगलों से युद्ध का दृश्य जीवंत कर दिया।

प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने बताया कि मेवाड़ उदयपुर के निकटवर्ती हिन्दू समाज के सहोदर भील आदिवासी समाज की ओर से रक्षाबंधन से नवरात्रि के मध्य माता पार्वती तथा परमपिता शिव की साक्षी में गवरी अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। इस अनुष्ठान में शामिल होने वाले आदिवासी बन्धु 40 दिन तक नितान्त पवित्रता तथा नियम पालन की मर्यादा में रहते हैं। कई समाज व गांव अपने यहां अनुष्ठान करने व अनुष्ठान द्वारा सुख-समृद्धि का आशीर्वाद पाने के निमित्त इन साधकों को आमंत्रित करते हैं। इसी क्रम में प्रताप गौरव केन्द्र में हल्दीघाटी क्षेत्र के बलीचा गांव से गवरी अनुष्ठान धारण करने वाले साधकों को आमंत्रित किया गया।

गवरी माता की स्थापना के साथ महाराणा प्रताप के जयकारे गूंजे। दिन भर गवरी की रमक के दौरान प्रताप गौरव केन्द्र दर्शन के लिए आने वाले पर्यटक भी वहीं जमते नजर आए। इस अवसर पर संस्कार भारती के अखिल भारतीय संगीत विधा प्रमुख अरुण कुमार शर्मा, आईसीएचआर के सदस्य सचिव डॉ. ओम उपाध्याय, वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के अध्यक्ष प्रो. बीपी शर्मा, उपाध्यक्ष एमएम टांक, सुभाष भार्गव, कोषाध्यक्ष अशोक पुरोहित, प्रचार मंत्री जयदीप आमेटा, सुखाड़िया विश्वविद्यालय ललित कला संकाय के अध्यक्ष डॉ. मदन सिंह राठौड़, इंटक के जगदीशराज श्रीमाली सहित कई गणमान्यजन ने गवरी साधकों को पारम्परिक रूप से सत्कार किया। अंत में परमपरानुसार पेहरावणी भी की गई। सभी साधकों को महाराणा प्रताप के चित्र भी भेंट किए गए।


Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *