भारत को रक्तरंजित करने का षड्यंत्र-23

विध्वंसक चौकड़ी के निशाने पर आदिवासी (वनवासी)-6

स्कॉटिश मिशनरी और अग्रणी शिक्षाविद्, अलेक्ज़ेंडर डफ के विचारों को 19वीं सदी में सक्रिय अधिकांश मिशनरियों की राय माना जा सकता है।
उन्होंने विचार दिया-
“हिन्दू दर्शन की धार्मिक शब्दावली में बहुत शानदार शब्द हैं; परन्तु, जो उन्हें बताया गया है- वह मात्र व्यर्थ, मूर्खतापूर्ण और दुष्ट अवधारणाएँ हैं।”

अलेक्जेंडर डफ के अनुसार–
‘हिंदुत्व अंधकार की तरह फैला है; जहाँ जीवन के हर तत्व का अंत मृत्यु है और मात्र मृत्यु ही जीवित रहती है।’ उनके अनुसार ‘ईसाइयों का यह उत्तरदायित्व है, कि वे मूर्ति पूजा और अंधविश्वास के विशालकाय ताने-बाने को ध्वस्त करने का हर सम्भव प्रयास करें।’
इसी दृष्टिकोण के चलते ईसाइयत और भारतीय संस्कृति के बीच कभी कोई सकारात्मक संवाद न हो सका…।
मिशनरी विचारधारा पर अलेक्जेंडर डफ, क्लॉडियस बुकानन, ट्रेवेलियन, मैकॉले एवं अन्य का गहरा प्रभाव था।

भारत आने वाले सरकारी अधिकारी और मिशनरी इस सीमा तक निर्लज्ज थे, कि वह भारत के राष्ट्रीय समाज (सनातन समाज) में कोई अच्छाई देखने को तैयार ही नहीं थे। प्रशासनिक एकाधिकार की मजबूत शक्ति से सुसज्जित यह समस्त ‘नस्लवादी’ भारतीय राष्ट्रीय समाज (सनातन समाज) के विषय में दुराग्रह सहित एकपक्षीय सोच रखते थे; और हमारे राष्ट्रीय समाज से घृणा करते थे।

इन्होंने अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए, हमें पीछे धकेलने वाले मनमाने कानून बनाकर लागू किए। वनवासी क्षेत्रों में अन्य लोगों की यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। दूसरी ओर, मिशनरियों को खुली छूट दे दी गई।
इसके चलते पूरे भारत में वनवासी एक कृत्रिम अलगाव की स्थिति में चले गए और इस स्थिति के चलते धर्मांतरण के माफिया का उद्योग बेरोक-टोक चल निकला।

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