देश का सबसे बड़ामौब-लिन्चिन्ग “1 नवम्बर /इतिहास स्मृति”
1 नवम्बर से 1984 से शुरू हुआ था देश का सबसे बड़ा मौब – लिन्चिन्ग जिसमें देखते हीं देखते 10,000 निर्दोष मासूम सिक्खों को कट्टरपंथी कांग्रेसियों द्वारा हत्या कर दी गई थी…इतने बड़े कत्लेआम पर उस समय काँग्रेस के उत्तराधिकारी और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने कहा था… जब कोई बड़ा वृक्ष गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती हीं है
अर्थात सिक्खों की निर्मम हत्या को जायज ठहराया था…1984 सिक्ख नरसंहार…अपराधियों और राजनीतिक दल के नापाक गठबंधन का घिनौना कृत्य था…31 अक्तूबर 1984 को देश की तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उन्हीं की सुरक्षा में नियुक्त दो पुलिस कर्मचारियों (एक सब इंस्पेक्टर व एक सिपाही) ने प्रधानमंत्री आवास पर ही कर दी किसी भी देश में प्रधानमंत्री व उसका निवास सबसे सुरक्षित स्थान होता है
जो भी व्यक्ति सेना अर्धसैनिक दस्ते या पुलिस की वर्दी पहनता है वह केवल देश के कानून व नागरिकों की सुरक्षा तक ही समर्पित होता है उसका व्यक्तिगत धर्म/जाति का बंधन उसे अपनी ड्यूटी निर्पेक्षता से करने में रुकावट नहीं होना चाहिए यदि सुरक्षा कर्मचारी अनुशासन की अवहेलना करे व रखवाले बनने की जगह कातिल हत्यारे बन जाएं तब जरूर कुछ बड़े मानसिक कारणों की संभावना होती है…इंदिरा गांधी जी पर हमला 31 अक्तूबर 1984 को सुबह तकरीबन 9:20 पर हुआ तुरंत उन्हें ‘ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस’ दिल्ली में ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने 10:50 पर उन्हें मृत घोषित कर दिया 11:00 बजे प्रातः ऑल इंडिया रेडियो प्रधानमंत्री जी को उन्हीं के दो सिक्ख शस्त्रधारी अंगरक्षकों द्वारा कत्ल करने की घोषणा करता है साधारणत: ‘ग्रेव एंड सडन प्रोवोकेशन’…भावनाएं तो कुछ मिनटों के बाद ही शांत हो जाती हैं परंतु दिल्ली में सिक्खों का कत्लेआम कुछ मिनटों बाद नहीं बल्कि कई घंटों की विचार मंथन से उत्पन्न हुई घटना प्रतीत होता है राजीव गांधी शाम 4:00 बजे वापस एम्स पहुंचते हैं पहली पत्थरबाजी की घटना शाम 5:30 बजे तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी के एम्स पहुंचने पर होती है रात में अकबर रोड दिल्ली के एक बंगले पर ऐसे कुछ मुख्य लोग इकट्ठे होते हैं जिनमें से अधिकतर पर सिक्ख कत्लेआम करवाने का दोष आज भी लगाया जाता है
01 नवंबर 1984 को सुबह केवल दिल्ली ही नहीं भारत के कई राज्यों में सिक्खों का नरसंहार आरंभ होता है जिन्होंने प्रधानमंत्री जी की हत्या की थी उनमें से एक को तो गिरफ्तार कर लिया गया व दूसरे को मौके पर ही मार गिराया गया परंतु नरसंहार उन हजारों निर्दोष सिक्खों का हुआ जिनका कोई जुर्म ही नहीं था निर्दोष सिक्खों का बर्बरता से नरसंहार किया गया सरेराह गले में टायर डालकर उन्हें जलाया गया सामूहिक कत्ल किए गए बलात्कार किए गए लूट की गई और गुरुद्वारों को तोड़ दिया गया…अच्छे भले लोग भी ‘खून का बदला खून’, ‘खून के छींटे सिक्खों के घर तक पहुंचने चाहिए’ और ‘जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है’ की बातें करने लगे…03 नवंबर तक देश की पुलिस फौज और अदालतें खामोश रहीं इंसानियत उनके ह्रदय में नहीं जागी सरकारी आंकड़ों के अनुसार इन 3 दिनों में करीब 2800 सिक्ख दिल्ली में और 3350 सिक्ख भारत के दूसरे राज्यों में कत्लेआम की भेंट चढ़े लूट खसोट और नुकसान का तो कोई हिसाब ही नहीं सरकारी तंत्र चाहे अराजकता की तस्वीर बना रहा परंतु आम आदमी के ह्रदय में इंसानियत जरूर कचोटती रही…उन्होंने मजलूमों को अपनी छाती से लगाकर अपने घर में छिपाकर भी रखा कई जगह बचाने वाले भी भीड़ तंत्र के शिकार बने और यह भले लोग शरणार्थी कैंपों में भी उनका सहारा बने ये हमला एक धर्म को मानने वालों के द्वारा दूसरे पंथ पर नहीं था बल्कि बदला लेने की नीयत से अपराधियों और राजनीतिक दल के नापाक गठबंधन का घिनौना कृत्य था।
इस कत्लेआम की पड़ताल तो क्या होनी थी पुलिस ने कोई मुकदमा भी दर्ज नहीं किया और न ही किसी अदालत ने कानून के पालन हेतु स्वयं ही कोई कार्रवाई की दुनिया भर में बदनामी के दाग से बचने हेतु तात्कालिक सरकार ने नवंबर 1984 में एक एडिशनल कमिश्नर पुलिस वेद मरवाह की अध्यक्षता में कमेटी बनाई जिसे 1985 में बंद कर दिया गया उस रिपोर्ट का भी कुछ पता नहीं अगला कमीशन जस्टिस रंगनाथ मिश्रा का बना जस्टिस रंगनाथ मिश्रा कमीशन ने कहा कि दोषियों की शिनाख्त करनी उसकी जिम्मेदारी का हिस्सा ही नहीं थी इसी क्रम में अब तक 10 से अधिक कमीशन और कमेटियां बन चुकी हैं परंतु पूर्ण इंसाफ की प्रक्रिया अभी देश की राजधानी दिल्ली में ही अधूरी है देश के अन्य राज्यों में 36 साल पूरे होने के बाद भी सरकार इंसाफ की निष्पक्ष जांच मुआवजा व दोषियों को सजा दिलाने हेतु पूरी तरह सजग नहीं है…सन् 1993 में मदन लाल खुराना जी की तरफ से बनाई गई ‘जस्टिस नरूला कमेटी’ को भी उस समय की केंद्र सरकार ने मान्यता नहीं दी थी।
पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई जी की सरकार ने सन् 2000 में ‘जस्टिस जी. टी. नानावती कमीशन’ का गठन करके इस नरसंहार की जांच को आगे बढ़ाया जो आज भी कभी तेज ओर कभी धीमी गति से चल रही है…बेगुनाह लोगों के कत्लेआम लूटमार और औरतों के साथ बलात्कार करने वाले दोषियों को सजा करवाने की प्रक्रिया यदि 39 साल में पूरी नहीं हो सकी तो लगता है कि पूरी न्यायिक प्रक्रिया की भी जांच आवश्यक है… प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की तरफ से सिक्ख भाईचारे के हरे जख्मों पर मरहम लगाने का प्रयास हो रहा है तो अच्छा हो कि समय निश्चित करके 1984 के अपराधियों को सजा दिलवाने के कार्य को भी प्रमुखता से किया जाए…