श्रुतम्

सबके राम-5 “इहलोक के राम”

सबके राम-5 “इहलोक के राम”

मर्यादा पुरुषोत्तम क्या करते? उनके सामने एक दूसरा विकल्प भी था, सत्ता छोड़ सीता के साथ चले जाते। लेकिन जनता (प्रजा) के प्रति उनकी जवाबदेही थी, इसलिए इस मार्ग पर वे नहीं गए। इक्ष्वाकु की वंश-परंपरा में होना या दशरथ का पुत्र होना मात्र राम के व्यक्तित्व को नहीं गढ़ता। राम सत्ता, वंश या शक्ति से संपोषित नहीं होते। वे नायकत्व और राजत्व दोनों अर्जित करते हैं।

राम अपने परिवार की बदौलत नहीं, प्रयासों की बदौलत हैं। दुनियां के अनेक नायकों के लिए राज्य सबसे बड़ी चीज होती है, पर राम के पास अपने पिता के समृद्ध राज्य अयोध्या से बड़ी चीज उनके स्वयं में अधिष्ठित है। इसलिए राज्य को ‘बटोही’ की तरह छोड़कर चल देते हैं। यही बात उन्हें मानवीयता का नायक बनाती है।
तुलसी लिखते हैं-
“राजिव लोचन राम चले तजि बाप को राज बटाऊ की नाई॥”
इसीलिए राम ‘अगम’ हैं। ‘सगुण’ भी हैं तो ‘निर्गुण’ भी हैं।
कबीर कहते हैं- “निर्गुन राम जपहुं रे भाई।”
मैथिलीशरण गुप्त मानते हैं कि “राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है, कोई कवि बन जाय सहज सम्भाव्य है।”
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