कनक लता बरूआ-3

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 15

स्वतंत्रता सेनानी जो मात्र 17 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय ध्वज के लिए बलिदान हुई…

बाल्यकाल से ही कनक लता अपनी आयु की अन्य बालिकाओं से बहुत अलग थीं। वे बचपन से ही देशभक्त और बहादुर थीं। इतना ही नहीं उनके मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा थी। क्योंकि वे यह तथ्य जानती थी कि अंग्रेजों ने भारत पर बलात (जबरदस्ती) अपना आधिपत्य कर रखा है। अपने देशवासियों पर होने वाले नानाविध अत्याचारों से वे बहुत दुखी थीं।

उस समय होने वाले आंदोलनों का भी उन पर बहुत प्रभाव था। वर्ष 1931 में हुए ‘चाईद्वार रयोत सभा’ जैसे आंदोलन और उनके नेता ज्योति प्रसाद अग्रवाल का भी उन पर बहुत प्रभाव पड़ा।
प्रमुख नेताओं यथा चेनीराम दास, महिम चंद्र, लखीधर सरमा और महादेव सरमा आदि को देखकर अंग्रेजों के विरुद्ध उनका मन और अधिक दृढ़ हो गया था। वे उनके पद चिन्हों पर चलकर भारत माता की आजादी के लिए लड़ना चाहती थीं…।

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