सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा- 28
जिन्होंने मात्र 50 सैनिकों की फौज के सहारे एक विशाल अंग्रेजी फौज से टक्कर ली…
कहते हैं कि चैन सिंह की तलवारों को मैडॉक (ब्रिटिश कंटोनमेंट का इंचार्ज) अपने साथ इंग्लैंड ले गया।
नरसिंहगढ़ के शासकों ने बाद में कुंवर चैन सिंह की याद में सीहोर के दशहरा मैदान में छतरी बनवाई। लोग आज भी सीहोर आते हैं और दशहरा मैदान स्थित इस छतरी को देखकर कुंवर चैन सिंह को सिर झुकाते और नमन् करते हैं। कुंवर के साथ ही शेरू भी इतिहास में अपना नाम कर गया।
क्या आप जानते हैं कि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए नरसिंहगढ़ के राजा से मदद मांगी थी? उन्होंने चैन सिंह की बहादुरी के बारे में सुना था और उन्हें विश्वास था कि नरसिंहगढ़ उनकी सहायता अवश्य करेगा।
तत्समय के नरसिंहगढ़ के शासक ने उनकी सहायता के लिए एक सेना भी ग्वालियर भेजी थी। परंतु इससे पहले कि वो सेना वहाँ पहुँचती, रानी लक्ष्मी बाई वीरगति को प्राप्त हो चुकी थीं।
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