पावना बृजवासी 6

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-18

निडर मणिपुरी सेनापति जिन्होंने सन् 1891 में अंग्रेजों के विरुद्ध घमासान युद्ध लड़ा…

अंग्रेजों द्वारा मणिपुर के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करने से पूर्व पावना बृजवासी मणिपुरी सेना में एक सूबेदार थे। युद्ध से कुछ दिन पहले उन्हें और चौंगथा मिया सिंह, दोनों को मेजर बना दिया गया।
दोनों तीन सौ सैनिकों के साथ बर्मा रोड़ से होते हुए पलेल पहुँचे। थौबॉल के पास खोंगजॉम नदी के पश्चिमी तट पर इन लोगों ने अपना शिविर बनाया। 22 अप्रैल को इन लोगों ने खंदक बनाकर उसमें मोर्चाबंदी कर ली।

दक्षिणी मोर्चे की ब्रिटिश फौज ने पलेल, काक्चिंग और लांगाथेल पर आधिपत्य कर लिया था और अब लांगाथेल पहाड़ी पर अपना शिविर बनाया। 23 अप्रैल को प्रातःकाल ब्रिटिश फौज ने ब्रिगेडियर जनरल टी ग्राहम के आदेश पर मणिपुरी मोर्चे की ओर गोलाबारी आरम्भ कर दी।

उसके बाद ब्रिटिश फौज ने मणिपुरी मोर्चे की ओर बढ़ना आरम्भ किया। मणिपुरी सैनिकों ने मार-क्षेत्र (War Range) में आने तक उनकी प्रतिक्षा की, और फिर अपने सेनापतियों के निर्देश पर ब्रिटिश सेना पर प्रचण्ड धावा बोल दिया। घमासान युद्ध में अंग्रेजों को भारी हानि उठानी पड़ी। वे हर संभव प्रयास के बाद भी आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। परंतु हथियारों की कमजोरी और संख्या बल में कम होने की वजह से धीरे धीरे मणिपुरी सैनिक गिरते जा रहे थे।
एक समय ऐसा भी आया जब अकेले पावना ब्रजवासी ही रह गए। परंतु यह वीर अभी भी हथियार डालने को तैयार ही नहीं था। गम्भीर रूप से घायल यह योद्धा अभी भी अंग्रेजों का भरसक प्रतिरोध कर रहा था। उनके साहस, शौर्य और बहादुरी से अंग्रेज जनरल बहुत प्रभावित हुआ।

अन्ततोगत्वा कड़े परिश्रम और सिपाहियों की हानि के बाद अंग्रेज पावना ब्रजवासी को पकड़ने में सफल हो गए। इसके बाद ही अंग्रेजों द्वारा उन्हें पद व लालच देने सम्बन्धी वार्तालाप हुआ, जिसका आरम्भ में उल्लेख किया गया है।

राष्ट्रनिष्ठ बहादुर मणिपुरी योद्धा पावना ब्रजवासी ने अंग्रेजों की पद व लालच की बात मानने से स्पष्ट मना कर दिया था। इसलिए उनका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। इस तरह यह महावीर योद्धा देश की माटी पर न्योछावर हो गया.. जिसके लिए राष्ट्रहित ही सर्वोपरि था।

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