पूज्य गोविंद गुरु ने वागड़ में चेतना की धुणी प्रज्जवलित की

पूज्य गोविंद गुरु ने वागड़ में चेतना की धुणी प्रज्जवलित की

भारतीय जनजातीय चेतना के इतिहास में भील समुदाय के उत्थान, स्वाभिमान और स्वराज्य की पहल का जो प्रकाश प्रज्ज्वलित हुआ, वागड़ मे इस धारा का प्रमुख स्रोत गोविंद गुरु थे। डूंगरपुर के बंसिया गाँव में 1858 में बंजारा परिवार मे जन्मे इस संत-वीर ने न केवल सामाजिक सुधार और शिक्षा का कार्य किया, बल्कि भील समाज में आध्यात्मिक जागरण का बीजारोपण भी किया। युवावस्था में स्वामी दयानंद सरस्वती के सिद्धांतों से प्रेरित होकर उन्होंने 1883 में ‘सम्प सभा’ की स्थापना की; सम्प सभा का उद्देश्य भीलों को नित्य स्नान, हवन, शिक्षा, नैतिकता, स्वदेशी उपयोग और संयम के माध्यम से आत्मसशक्त बनाना और अंग्रेजी शोषण के विरुद्ध संगठित करना था। गोविंद गुरु की शिक्षाएँ मात्र राजनीतिक विद्रोह नहीं थीं — वे आध्यात्मिक उन्नयन और सांस्कृतिक सुरक्षा एवं सामाजिक सुधार का माध्यम भी थीं; ठीक उसी प्रकार जैसे भगवान बिरसा मुंडा के बिरसायत पंथ ने जनजातीय चेतना और आत्मरक्षा का आधार आध्यात्मिकता को बनाया था। दोनों धाराओं का एकत्व यह दर्शाता है कि उनका संघर्ष केवल विदेशी शासन के विरुद्ध नहीं, बल्कि विदेशी आस्थागत हस्तक्षेप और सांस्कृतिक उपनिवेशीकरण के विरुद्ध भी था।

सम्प सभा की बढ़ती लोकप्रियता से अंग्रेज प्रशासन बेतरह चिंतित हुआ। अंग्रेजों ने जनजाति समाज में अफ़रातफ़री मचाने और दमन का बहाना तैयार करने के लिए साजिशें रचीं। इसी रणनीति के तहत संतरामपुर की गडरा चोकी के सिपाही गुल मोहम्मद को जमादार यूसुफ खां के साथ भीलों के बीच टोह लेने मानगढ़ भेजा। यह वहीं सिपाही गुल मोहम्मद था जो अपने गुस्सेल व दमनकारी स्वभाव के चलते स्थानीय जनजाति लोगों में नापसंद किया जाता था। इस तरह झड़प हुई और गुल मोहम्मद मारा गया। एक चाल जो अंग्रेजों को हिंसा उकसाने और बाद में दमन की वैधता दिखाने का आधार बनी। जब मानगढ़ पहाड़ी पर 17 नवंबर 1913 की मार्गशीर्ष पूर्णिमा को होने वाले वार्षिक मेला के दौरान बड़ी संख्या में भील इकट्ठा हुए। तब अंग्रेज अधिकारियों ने इसे अवसर के रूप मे देखा। गोविंद गुरु के नेतृत्व और सम्प सभा के प्रभाव से भीलों की भीड़ उमड़ी। कर्नल शैटर के नेतृत्व में आर.एफ. हैमिल्टन, जिलाधीश सी.एम. इलियट तथा पुलिस अधीक्षक एफ. पीटर्स की मौजूदगी में मानगढ़ की शांत सभा पर गोली चलाने का आदेश दिया। यह गोलीबारी दो घंटे से अधिक चली और हजारों निर्दोष भीलों ने अपने प्राणों की आहुति दी। इतिहासकारों में यह संख्या लगभग 1500 से ऊपर बताई जाती है। मानगढ़ की वह रात जनजातीय इतिहास का एक काला अध्याय बनकर रह गई और इस अमर बलिदान को आज भी जनजातीय स्मृति के रूप में याद किया जाता है।

गोविंद गुरु को गिरफ्तार कर पहले फाँसी की सजा सुनाई गई, जो बाद में आजीवन कारावास में बदल दी गई। जेल से रिहा होने पर उन्होंने ‘भील सेवा सदन’ के माध्यम से अपना जीवन जनहित और समाज-सुधार को समर्पित कर दिया। उनके भूरेटिया गीत और लोकभजन आज भी भीलों में जागृति, आत्मबल और देशप्रेम का संचार करते हैं। उन भजनों में लोकप्रचलित पंक्तियों में से एक छंद विशेष रूप से यादगार है — भूरेटिया के गीतों में जो भाव है, उसी परंपरा में गाया जाने वाला एक प्रसिद्ध छंद निम्नलिखित स्वर में जुड़ा हुआ है: ““ भूरेटिया नई मानु रे नई मानू, झालोद मांय मारो दीयो है गोधरा मांय मारी जाजम है, अहमदाबाद मांय बैठक है दिल्ली मांय मारी गादी है, मानगढ़ मारी धूणी है भूरेटिया नई मानु रे नई मानू। ”” — अहमदाबाद से लेकर दिल्ली तक का उल्लेख बताता है कि उनके आंदोलन में विदेशी शासन के विरुद्ध राष्ट्रीय भावना निहित थी।

मानगढ़ स्मृति-स्थल केवल एक ऐतिहासिक स्थल नहीं है; यह जनजातीय गौरव, सामाजिक-आध्यात्मिक चेतना और स्वराज्य की एक अमिट गाथा है। गोविंद गुरु ने भील समाज में जो चेतना जगाई, वही चेतना मानगढ़ की मिट्टी में अमर बलिदान के रूप में क्षितिज पर चमकती रहती है। उनकी शिक्षाएँ और जन-गीत आज भी उन लोगों के दिलों में देशभक्ति और आध्यात्मिक अनुशासन की लौ जलाते हैं। इसीलिए यह कथा न केवल जनजातीय इतिहास बल्कि भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम की एक अनकही आध्यात्मिक-राष्ट्रीय धारा भी है।

भगत परंपरा आज भी जनजाति समाज में “जय गुरु नी” व “राम-राम” के सम्बोधन के साथ गुरु भजन के साथ सामाजिक सुधार के लिए समर्पित होकर सक्रिय है। इसी क्रम में शासन व समाज द्वारा भी नियमित रूप से मानगढ़ धाम के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की जाती रही है। वर्ष 2012 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के उल्लेखनीय प्रयास किए। 30 जुलाई को मानगढ़ धाम पर अमर बलिदानियों की स्मृति में 1507 पेड़ लगाकर गुजरात सरकार ने 63वे वन महोत्सव का शुभारंभ किया। 30 सितंबर को गोविंद गुरु स्मृति वन का उद्घाटन किया। 10 वर्ष उपरांत 1 नवंबर 2022 को प्रधानमंत्री के रूप मे नरेंद्र मोदी तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ पहुंचे थे। इससे पूर्व छात्र संगठन एबीवीपी ने 2004 में मानगढ़ धाम से गौरव यात्रा निकाली,जो विभिन्न जिलों के शैक्षणिक परिसरों मे छात्र सभाए करती हुई जयपुर पहुंची।

अंततः जनजातीय समाज के विविध आध्यात्मिक गुरुओं—विशेष रूप से मानगढ़ धाम के गुरु गोविंद गिरी जी, जिन्होंने जनजाति समाज में सांस्कृतिक चेतना, सामाजिक अधिकार और राष्ट्रीय आत्मसम्मान की ज्योति प्रज्वलित की उनका योगदान इतिहास में अनुपम है। इसी क्रम में बिरसा मुंडा द्वारा स्थापित बिरसायत पंथ ने जनजातीय अस्मिता, स्वाभिमान और आध्यात्मिक जागरण को नई दिशा दी। उनके अद्वितीय योगदान की स्मृति में आज जनजाति गौरव दिवस पूरे राष्ट्र में आदर तथा गर्व के साथ मनाया जाता है। साथ ही मावजी महाराज की लोक–धर्म आधारित दिव्य शिक्षाएँ, सुरमाल दास जी का सामाजिक जागरण तथा मामा बालेश्वर दयाल के सत्संग, सेवा और स्वाभिमान से भरे उपदेशों ने समाज को आत्मबल, अनुशासन और एकता का संबल दिया है। ऋषि वाल्मिकि व शबरी माता की समृद्ध आध्यात्मिक धारा में इन संत-महात्माओं की प्रेरणा हमें वेदवाक्य—“सङ्गच्छध्वं संवदध्वं, सं वो मनांसि जानताम्”—के अनुरूप समरस, सहयोगी और एकात्म समाज के निर्माण का मार्ग दिखाती है। सनातन आस्था व राष्ट्रीय संदर्भ में स्व के प्रति जागृत रहकर संपूर्ण समाज को एक सूत्र में पिरोना ही हमारे सामूहिक उत्कर्ष, सांस्कृतिक संरक्षण और राष्ट्रीय उत्थान की आधारशिला है।

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