श्रुतम्

रोईपुल्लानी-2

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 16

मिजोरम की 84 वर्षीय मुखिया जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध झुकने से स्पष्ट मना किया…

सन् 1871 ई में अंग्रेजों को मिजोरम में हस्तक्षेप करने का अवसर मिल गया।
हुआ ये कि कुछ मिजो सरदारों ने चाय बागानों पर छापे मारकर कुछ अंग्रेज अफसर मार डाले, उनके हथियार लूट लिए और कुछ को बंदी भी बना लिया।
इसी का लाभ उठा कर अंग्रेजों ने दो दिशाओं से मिजोरम पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने कई गाँव पूरी तरह जला डाले। अन्ततः, दोनों पक्षों के बीच संधि हो गई।

मिजो लोगों ने 14 वर्ष तक इस संधि को माना और उसके पश्चात अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया..।
कई स्थानों पर मिजो सरदारों और अंग्रेजों के बीच युद्धभड़क उठा। सैकड़ों मिजो लोग शहीद हो गए। अब चूंकि अंग्रेज सैन्य शक्ति में उनसे कहीं अधिक थे, इसलिए सन् 1890 ई तक अंग्रेजों ने संपूर्ण मिजोरम पर अधिकार कर लिया।

अप्रैल 1890 में कैप्टन ब्राउन को मिजोरम का पॉलिटिकल अफसर और गवर्नर बना दिया गया। परंतु कुछ साहसी स्वाभिमानी मिजो सरदार अभी भी अंग्रेजों की प्रभुसत्ता को मानने से मना करते थे।

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