मोगा में संघ की शाखा पर हमला “25 जून/इतिहास-स्मृति”


मोगा में संघ की शाखा पर हमला “25 जून/इतिहास-स्मृति”

1980 का दशक भारतवर्ष और विशेषकर पंजाब के लिए बहुत दुखदायी रहा। कुछ भ्रमित नेताओं की शह पर एक अलग देश (खालिस्तान) लेने के लिए कई उग्र समूह पनप उठे। बस, रेल और घरों से निकालकर सैकड़ों हिन्दुओं को मारा गया। इससे हिन्दू और सिखों के रोटी-बेटी के संबंध टूटने लगे। यद्यपि बाद में स्थिति सुधर गयी; पर कुछ लोगों के मन के घाव कभी नहीं भर सके।

उधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता इस प्रयास में लगे थे कि हिन्दू और सिखों में दरार न पड़े। संघ दोनों को एक मानता है। शाखा पर सब आते हैं। उसके पदाधिकारियों में दोनों समुदायों के लोग होते हैं। संघ के सेवा कार्यों में कोई भेदभाव नहीं किया जाता। लोग इसलिए संघ वालों का बड़ा सम्मान करते हैं; पर उग्रवादी इस एकता को तोड़ना चाहते थे।

देश भर की तरह पंजाब के मोगा शहर में भी संघ की सुबह और शाम की कई शाखाएं लगती हैं। ऐसी ही एक प्रभात शाखा वहां नेहरू पार्क में लगती थी। सैकड़ों लोग वहां घूमने भी आते थे। 25 जून, 1989 (रविवार) को वहां नगर की सब प्रभात शाखाओं का मिलन रखा गया था। शाखा के नियमित कार्यक्रम हो रहे थे कि अचानक 6.25 पर कुछ आतंकी छोटे दरवाजे से पार्क में घुस आये। आते ही उन्होंने शाखा का ध्वज उतारने को कहा। संघ के पदाधिकारियों के मना करने पर वे अंधाधुंध गोली चलाने लगे। इससे स्वयंसेवकों तथा वहां टहल रहे नागरिकों में भगदड़ मच गयी।

स्वयंसेवक निहत्थे थे, तो आंतकी हथियारों से लैस। अतः कुछ ही देर में वहां चारों और खून बिखर गया। कुछ स्वयंसेवकों ने वहीं दम तोड़ दिया, तो कुछ ने अस्पताल में जाकर। उस दिन शहीद हुए 22 लोगों के नाम हैं – सर्वश्री लेखराज धवन, बाबूराम, भगवान दास, शिवदयाल, मदन गोयल, मदन मोहन, भगवान सिंह, गजानंद, अमन कुमार, ओमप्रकाश, सतीश कुमार, केसोराम, प्रभजोत सिंह, नीरज, मुनीश चैहान, जगदीश भगत, वेदप्रकाश पुरी, भगवान दास, पंडित दुर्गा दत्त, प्रह्लाद राय, जगतार राय सिंह तथा कुलवंत सिंह।

जब आतंकवादी भाग रहे थे, तो श्री ओमप्रकाश एवं छिंदर कौर नामक वीर दम्पति ने उन्हें ललकारा। इस पर उन्हें भी गोलियों से भून दिया गया। पास में खेल रही डेढ़ साल की बच्ची डिंपल भी गोली का शिकार होकर मारी गयी। मरने वाले 25 के अलावा 31 स्वयंसेवक और नागरिक घायल भी हुए।

इस दुर्घटना से पूरे राज्य में तहलका मच गया। कई लोग कहने लगे कि अब तो हिन्दू और सिखों में गृहयुद्ध छिड़ जाएगा; पर संघ के कार्यकर्ताओं ने धैर्य नहीं खोया। उन्होंने सबको समझाया कि यह काम कुछ सिरफिरे लोगों का है। आम सिखों में हिन्दुओं के प्रति कोई द्वेष नहीं हैं। हम सब सगे सहोदर भाई हैं। इससे वातावरण खराब नहीं हुआ और आतंकियों के मंसूबे विफल हो गये।

अगले दिन फिर वहीं शाखा लगी। आज पहले से भी अधिक स्वयंसेवक उपस्थित थे। वहां गीत बोला गया, ‘‘कौन कहदां ए हिन्दू सिख वख ने, भारत माता की सज्जी-खब्बी अख ने।’’ (कौन कहता है कि हिन्दू और सिख अलग हैं। वे तो भारत माता की दाहिनी और बायीं आंख जैसे हैं।) यह गीत सुनकर आंतकियों और उनके हमदर्दों ने सिर पीट लिया।

कुछ दिन बाद स्वयंसेवकों और नगर के नागरिकों ने ‘मोगा पीडि़त मदद और स्मारक समिति’ गठित कर वहां एक ‘शहीदी स्मारक’ का निर्माण किया। उसका शिलान्यास संघ के वरिष्ठ प्रचारक भाउराव देवरस ने नौ जुलाई को तथा उद्घाटन 24 जून, 1990 को संघ के सरकार्यवाह श्री रज्जू भैया ने किया। हर साल 25 जून को हजारों स्वयंसेवक तथा नागरिक वहां आकर हिन्दू और सिख एकता के लिए शहीद हुए स्वयंसेवकों को श्रद्धांजलि देते हैं। वह पार्क भी अब ‘शहीदी पार्क’ कहलाता है।

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