आत्मनिर्भर भारत तथा हमारी अवधारणा-9

सन् 1931 में गांधी जी गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने हेतु लंदन गए थे। उन्होंने उस दौरान लंदन के कई स्थानों पर भाषण दिया था। चैथम में भाषण देते हुए उन्होंने कहा कि-
“अंग्रेजो! जब तुम भारत में आए थे, तब भारत बेहद शिक्षित था। तुम्हारे आने से 50-100 वर्ष पूर्व यहाँ साक्षरता थी। तुमने इसे आगे बढ़ाने के बजाय हमारी शिक्षा प्रणाली को जड़ से नष्ट कर दिया। तुमने जड़ देखने के लिए मिट्टी खोदी, वापस गड्ढा न भरकर खुला छोड़ दिया और समूचे वृक्ष को नष्ट कर दिया…।”
गाँव के स्कूल अंग्रेजों को अपने अनुकूल नहीं लगे, तो अपनी यूरोपियन शिक्षा प्रणाली ले आए, जो महँगी और हमारे अनुकूल नहीं थी। इनके विद्यालयों में आडंबर अधिक था, शिक्षा कम थी। हमारे गाँव के विद्यालयों की मान्यता समाप्त कर इनका अस्तित्व ही मिटा दिया।

बाद में गांधी जी की इस बात पर अंग्रेजों ने आपत्ति की।
गांधी जी ने श्री धर्मपाल नामक अपने एक विद्यार्थी को इस विषय पर शोध कार्य हेतु लगाया। धर्मपाल जी ने इन विषयों पर 11 ग्रंथ लिखे हैं। उन्होंने तत्समय के मद्रास के गवर्नर सर थॉमस मुनरो के इतिहास को पढ़ा।

सर थॉमस मुनरो ने मद्रास सूबे के बारे में लिखा है कि-
“वहाँ हर गाँव में विद्यालय है। ये विद्यालय केवल किताबी शिक्षा ही नहीं देते, सांस्कृतिक व वैचारिक मूल्यों का भी नीचे तक प्रसार करते हैं। इनमें सभी जाति व वर्गों के बच्चे पढ़ने आते हैं। इनमें सभी जाति व वर्गों के शिक्षक भी हैं। मद्रास सूबे का कोई गाँव ऐसा नहीं है, जहाँ विद्यालय न हो। इन विद्यालयों को केवल शिक्षा संस्थान कहना ही उचित नहीं होगा। अपितु ये औपचारिक शिक्षा के अतिरिक्त सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और पारंपरिक संस्कार भी देते हैं।”

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