जो अपने पूर्वजों की संस्कृति को छोड़कर जा रहे हैं उन्हें एसटी का स्टेटस भी छोड़ना चाहिए – सूर्यनारायण सूरी
-18 जून को उदयपुर में जनजाति समाज भरेगा डीलिस्टिंग के लिए हुंकार
-बिपरजॉय की आहट के बीच तैयारियां जारी
उदयपुर, 16 जून। जो जनजाति समाज का व्यक्ति धर्म परिवर्तन करते समय यह शपथ ले रहा है कि वह अपने पूर्वजों का सबकुछ छोड़कर अन्य आस्था की शरण में जा रहा है, तब उसे एसटी होने का स्टेटस भी छोड़ना ही चाहिए। यह बात जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सूर्यनारायण सूरी ने शुक्रवार को यहां पत्रकार वार्ता में कही।
उदयपुर में जनजाति सुरक्षा मंच राजस्थान की ओर से 18 जून को आहूत हुंकार डीलिस्टिंग महारैली की तैयारियों के अंतर्गत उदयपुर आए सूरी ने पत्रकारों से डीलिस्टिंग की आवश्यकता पर चर्चा करते हुए कहा कि जब व्यक्ति अपने पूर्वजों का सबकुछ छोड़कर जा रहा है, इसका अर्थ है कि वह संस्कृति, आस्था, परम्पराओं, परिवार, भाषा, व्यवहार आदि सबको छोड़ रहा है जो उसे अपने पूर्वजों से मिली है, और इस आधार पर ही उसे एसटी का स्टेटस भी छोड़ना ही चाहिए क्योंकि वह भी तो उसे अपने पूर्वजों से ही मिला है।

उन्होंने कहा कि विघटनकारी ताकतें जनजाति समाज के हिन्दू होने पर भी भ्रम खड़ा कर रही हैं। उन्होंने कहा कि जनजाति समाज के जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कार सनातन संस्कृति पर आधारित हैं। कुलदेवता, कुलगौत्र, पूजा पद्धति आदि की व्यवस्था वे सनातन संस्कृति की परम्पराओं के अनुरूप ही पालन करते हैं। उन्होंने भ्रम फैलाकर विवाद खड़ा करने वाली ताकतों पर सवाल खड़ा किया कि फॉरेन रिलीजियस वाले होते कौन हैं यह तय करने वाले कि कौन हिन्दू है और कौन नहीं।
सूरी ने धर्मान्तरण को एक बड़ा षड़यंत्र करार देते हुए कहा कि जब धर्म और आस्था का क्षरण होता है तो संस्कृति का क्षरण होता है और धीरे-धीरे आगे जाकर व्यक्ति की पहचान का ही क्षरण हो जाता है। जाति के आधार पर अलग से राज्य की मांग भी इसी षड़यंत्र का हिस्सा है। हमारे देश में कभी जाति के आधार पर राज्य नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि 1947 में भारत ने धर्म के आधार पर बंटवारे का दर्द झेला है, अब हो रहा धर्मान्तरण देश को धर्म के आधार पर फिर तोड़ने का षड़यंत्र कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। उत्तर-पूर्व के जिन राज्यों में धर्मान्तरण बड़ी संख्या में हो चुका है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां रविवार को सड़कें सूनी हो जाती हैं क्योंकि सभी चर्च में जाते हैं।
सूरी ने कहा कि डॉ. कार्तिक उरांव ने इन स्थितियों को भांप लिया था तभी उन्होंने डीलिस्टिंग की मांग उठाई थी और संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट भी उनकी बात पर सहमत थी, लेकिन 1970 से यह फाइल लम्बित है जिसे जनजाति सुरक्षा मंच फिर से संसद के पटल पर लाने और संविधान में संशोधन कर धर्मान्तरित जनजाति व्यक्तियों को एसटी के स्टेटस से बाहर करने का प्रावधान जुड़वाने के लिए आंदोलन कर रहा है। सूरी ने बताया कि सात राज्यों में ऐसी रैलियां हो चुकी हैं, राजस्थान आठवां राज्य है। अक्टूबर तक करीब 22 राज्यों में ऐसी रैलियां होंगी। 24-25-26 अक्टूबर को छह राज्यों में तथा 29 अक्टूबर के दिन चार राज्यों में एक साथ महारैली होगी।
उन्होंने कहा कि यह विषय सिर्फ एक जनजाति समाज का नहीं, बल्कि देश की संस्कृति और सुरक्षा से जुड़ा है। इस विषय को समझकर हर समाज आंदोलन में सहयोगी बना है। इसी का उदाहरण है कि उदयपुर में घर-घर से जनजाति बंधुओं के लिए भोजन पैकेट तैयार हो रहे हैं। उनके आंदोलन में हर कोई सहयोग कर रहा है। इस विषय पर जनजाति समाज में भी जागरूकता आई है और अब वह आपस में मिलने के दौरान ‘राम-राम’ अभिवादन के साथ ‘डीलिस्टिंग-डीलिस्टिंग’ कहकर भी अभिवादन करने लगे हैं।
बिपरजॉय तूफान के चलते आयोजन के बाधित होने की आशंका के सवाल पर सूरी ने कहा कि 44 डिग्री तापमान में गौंड जनजाति के लोग डीलिस्टिंग की मांग को लेकर हुई रैली में बिना चप्पल आए थे, तो बारिश की स्थिति जनजाति युवाओं को कहां रोक सकती है, वे इस मौसम में नाचते-गाते-ढोल बजाते आएंगे।
प्रेसवार्ता में जनजाति सुरक्षा मंच के मार्गदर्शक व सामाजिक कार्यकर्ता भगवान सहाय तथा महारैली के संयोजक नारायण गमेती ने 18 जून की विभिन्न व्यवस्थाओं के बारे में जानकारी दी। उल्लेखनीय है कि इस हुंकार महारैली में एक लाख से अधिक जनजाति बंधुओं के आने की संभावना है।